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है । काव्य अनुष्टुप् छन्द में लिखा गया है, किन्तु सर्गान्त में छन्दों का परिवर्तन है । इनमें शार्दूलविक्रीडित, मालिनी तथा स्रग्धरा छन्द मुख्य हैं । यह काव्य अभी तक अप्रकाशित है । इसको ताड़पत्रीय प्रति शान्तिनाथ भण्डार खम्भात में है | ४3
माणिक्यचन्द्रसूरि राज्यगच्छीय नेमिचन्द्र के प्रशिष्य और सागरचन्द्र के शिष्य थे ।४४ ये महामात्य वस्तुपाल के समकालीन थे । माणिक्यचन्द्रसूरि ने पार्श्वनाथ चरित की रचना वि० सं० १२७६ ( १२१९ ई० ) में दीपावली के दिन वेला के किनारे देवकूपक नामक नगर में की थी । ४५ वि० सं० १२९० ( १२३३ ई० ) में जिनभद्र की प्रबन्धावली में माणिक्यचन्द्र का उल्लेख तथा उनके साथ वस्तुपाल के सम्बन्ध का भी विवरण दिया गया है । ६ डॉ० रामजी उपाध्याय ने माणिक्यचन्द्र के पिता का नाम सागरेन्दु लिखा है । ४७ परन्तु इस तरह का उल्लेख अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिला है । सम्भवतः डॉ० उपाध्याय ने उनके गुरु के नाम सागरचन्द्र ( सागरेन्दु ) को ही पिता का नाम समझ लिया है । ९. पार्श्वनाथ चरित -- विनयचन्द्रसूरि
परम्पराप्राप्त कथानक में लिखित यह विनयांकित महाकाव्य है । कोई भी मौलिक परिवर्तन या परिवर्धन इसमें नहीं किया गया है । यह भी अद्यावधि अप्रकाशित है। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ 'हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मन्दिर, पाटन में हैं । काव्य सरल एवं प्रसाद गुण से सम्पन्न है । अलंकारों का पर्याप्त प्रयोग हुआ है । ग्रन्थ अनुष्टुप् छन्द में है, किन्तु सर्गान्त में इन्द्रवज्रा, उपजाति, मालिनी, शिखरिणो आदि छन्दों का भी प्रयोग किया गया है ।
विनयचन्द्रसूरि की गुरुपरम्परा ग्रन्थप्रशस्ति के अनुसार इस प्रकार है - चन्द्रगच्छीय शीलगुणसूरि > मानतु रंगसूरि > रविप्रभसूरि > १ - नरसिंहसूरि, २ - नरेन्द्र प्रभसूरि और ३ - विनयचन्द्रसूरि । इनका साहित्यिक-काल वि० सं० १२८६ से १३४५ ( १२२९ से १२८८ ई० ) तक माना जाता है । ४६ कवि ने संस्कृत, प्राकृत, एवम् गुजराती में अनेक काव्यों की रचना की है ।
१०. पार्श्वनाथचरित -- सर्वानन्दसूरि
यह पाँच सर्गात्मक काव्य है । इसकी एक ताड़पत्रीय प्रति संघवी पाड़ा भण्डार, पटना में जीर्ण अवस्था में मिलती है । इसमें १५६ पृ०
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