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________________ ( १४ ) तो गोशालक ने भी भगवान् महावीर को 'आउसो कासवाँ' कहकर सम्बोधित किया है ।६६ अर्हत् और बुद्ध-वर्तमान में जैन परम्परा में 'अर्हत्' शब्द और बौद्ध परम्परा में 'बुद्ध' शब्द रूढ हुआ है। जैनागमों में 'बुद्ध' शब्द का प्रयोग अनेक स्थलों पर हुआ है । जैसे सूत्रकृतांग९७ राजप्रश्नीय५८, स्थानांग९९, समवायांग१०० आदि में । बौद्ध परम्परा में पूज्य व्यक्तियों के लिए 'अर्हत्' शब्द व्यवहृत हुआ है । यत्र-तत्र तथागत बुद्धं को 'अर्हत् सम्यक् सम्बुद्ध'१०१ कहा गया है। तथागत बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् ५०० भिक्षुओं की एक विराट् सभा होती है। वहाँ आनन्द के अतिरिक्त ५९९ भिक्षुओं को 'अर्हत्' कहा गया है। कार्यारम्भ होने के पश्चात् आनन्द को भी 'अर्हत्' लिखा गया है । ०२ शताधिक बार 'अर्हत्' शब्द का प्रयोग हुआ है। जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में गृहस्थ उपासक के लिए 'श्रावक' शब्द व्यवहत१० हुआ है । जैन परम्परा में गृहस्थ के लिए 'श्रावक' शब्द आया है तो बौद्ध परम्परा में भिक्षु और गृहस्थ दोनों के लिए 'श्रावक' शब्द का प्रयोग मिलता है ।१०४ इसी प्रकार उपासक या श्रमणोपासक शब्द भी दोनों ही परम्पराओं में प्राप्त है। गहस्थ के लिए 'आगार' शब्द का भी प्रयोग हुआ है । जैन साहित्य में 'आगाराओ अणगारियं पक्वइत्तए' शब्द आया है१०५ तो बौद्ध साहित्य में भी 'अगारम्मा अनगारिअं पव्वजन्ति' यह शब्द व्यवहृत हुआ है ।। सम्यक्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि इन शब्दों का प्रयोग भी जैन और बौद्ध साहित्य में प्राप्त होता है । स्वयं के अनुयायियों के लिए 'सम्यक् दृष्टि' और दूसरे के अनुयायियों के लिए 'मिथ्या दृष्टि' शब्द का प्रयोग किया गया है। 'वैरमण' शब्द का प्रयोग भी दोनों ही परम्पराओं में व्रत लेने के अर्थ में हुआ है। - मज्झिमनिकाय ०७ में सम्मादिट्टि सुत्तन्त नामक एक सूत्र है। उसमें सम्यक् दृष्टि का वर्णन करते हुए लिखा है-आर्य श्रावक सम्यग्दृष्टि होता है। उसकी दृष्टि सीधी होती है। वह धर्म में अत्यन्त श्रद्धावान् होता है । वह अकुशल एवं अकुशलमूल को जानता है । साथ ही कुशल और कुशलमूल को भी जानता है। जिससे वह आर्य श्रावक सम्यग्दृष्टि होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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