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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना
मौद्गल्यायन :
मौद्गल्यायन का नाम भी सारिपुत्र के साथ-साथ बुद्ध के प्रधान शिष्यों में आता है। वे तपस्वी और सर्वश्रेष्ठ ऋद्धिमान थे। जैनपरम्परा में जैसे गौतम के लब्धि-बल के विषय में अनेक बातें प्रचलित हैं; उसी प्रकार मौदगल्यायन के ऋद्धि-बल की अनेक घटनाएँ बौद्ध-परम्परा में प्रचलित हैं।
पाँचसौ वज्जी भिक्षओं को देवदत्त के नेतृत्व से मुक्त करने में सारिपुत्र के साथ मौद्गल्यायन का भी पूरा हाथ रहा है ।
बुद्ध की प्रमुख उपासिका विशाखा ने सत्ताईस करोड स्वर्णमुद्राओं को लागत से बुद्ध और उनके भिक्षु-संघ के लिए एक विहार बनाने का निश्चय किया। इस कार्य के लिए विशाखा ने बुद्ध से एक मार्ग-दर्शक भिक्षु की याचना की। बुद्ध ने कहा-"तुम जिस भिक्ष को चाहती हो, उसी का चीवर और पात्र उठा लो।" विशाखा ने यह सोचकर कि मौद्गल्यायन, भिक्षु ऋद्धिमान् हैं; इनके ऋद्धिबल से मेरा कार्य शीघ्र सम्पन्न होगा; उन्हें ही इस कार्य के लिए मांगा। बुद्ध ने पाँचसौ भिक्षुओं के परिवार से मौदगल्यायन को वहाँ रखा। कहा जाता है, उनके ऋद्धि-बल से विशाखा के कर्मकर रात भर में साठ-साठ योजन से बड़े-बड़े वृक्ष, पत्थर आदि उठा ले आने में समर्थ हो जाते थे । ___ जैन-परम्परा उक्त समारम्भपूर्ण उपक्रम को भिक्षु के लिए आदरणीय नहीं मानती और न वह लब्धि-बल को प्रयुज्य ही मानती है, पर लब्धि-बल की क्षमता और प्रयोग को अनेक अद्भुत घटनाएँ उसमें भी प्रचलित हैं। महावीर द्वारा संदीक्षित नन्दीसेन भिक्षु ने, जो श्रेणिक राजा के पुत्र थे, अपने तपो-बल से वेश्या के यहाँ स्वर्णमुद्राओं की वृष्टि कर दिखाई।''
७. अंगुत्तर निकाय, १३१४ । ८. विनयपिटक, चुल्लवग्ग, संघ-भेदक-खन्धक । ६. धम्मपद-अट्ठकथा, ४।४४ । १०. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्रम्, पर्व १०, सर्ग ६ ।
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