________________
श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना सेवा की है। मेरा अनुसरण किया है। कार्यों में प्रवर्तित हुआ है। पूर्ववर्ती देव-भव तथा मनूष्य-भव में भी तेरा मेरे साथ सम्बन्ध रहा है, और क्या, मृत्यु के पश्चात् भी-इन शरीरों के नाश हो जाने पर दोनों समान, एक प्रयोजन वाले तथा भेद-रहित (सिद्ध) होंगे।'
उक्त उद्गारों से स्पष्ट होता है, महावीर के साथ गौतम का कैसा अभिन्न सम्बन्ध था। चन्दनबाला:
चन्दनबाला महावीर के भिक्षुणी-संघ में अग्रणी थी। पद से वह 'प्रवर्तिनी' कहलाती थी । वह राज-कन्या थी। उसका समग्र जीवन उतार-चढ़ाव के चलचित्रों में भरा-पूरा था। दासी का जीवन भी उसने जीया । लौह-शृखलाओं में भी वह आबद्ध रही, पर उसके जीवन का अन्तिम अध्याय एक महान् भिक्षुणी-संघ की संचालिका के गौरवपूर्ण पद पर बीता।
स्थानांग-समवायांग के अनुसार महावीर के भिक्ष-संघ में सातसौ भिक्षुओं ने कैवल्य (सर्वज्ञत्व) पाया, तेरहसौ भिक्षुओं ने अवधि-ज्ञान प्राप्त किया, पाँचसौ मन:पर्यवज्ञानी हए, तीनसौ चतुर्दशपूर्व-धर हुए तथा इनके अतिरिक्त अनेकानेक भिक्षु-भिक्षुणियाँ लब्धिधर, तपस्वी, वाद-कुशल आदि हुए।
महावीर कभी-कभी भिक्षु-भिक्षुणियों की विशेषताओं का नामग्राह उल्लेख भी किया करते थे।
१. समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी-'चिरसंसिट्ठोऽसि मे गोयमा ! चिरसंथुओऽसि मे गोयमा ! चिरपरिचिओऽसि मे गोयमा ! चिरजुमिओऽसि मे गोयमा ! चिराणुगओऽसि मे गोयमा ! चिराणवत्तीसि मे गोयमा ! अणंतरं देवलोए अणंतरं माणुस्सए भवे, किं परं ? मरणा कायस्स भेदा, इओ चुत्ता दो वि तुल्ला एगठा अविसेसमणाणत्ता भविस्सामो।
--भगवती सूत्र, श० १४, उ०७ २. स्थानांग सूत्र २३०; समवायांग, सम० ११० । ३. कल्पसूत्र (सू० १४४) के अनुसार ७०० भिक्षु व १४०० भिक्षणियों ने
सिद्ध गति प्राप्त की।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org