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________________ २०४ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना भी गोम्मटसार एवं लब्धिसार नाम के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का सर्जन किया । उपरिवर्णित विशाल आगम साहित्य के अतिरिक्त जैनाचार्यों ने प्राकृत भाषा में प्रचुर परिमाण में काव्य तथा कला साहित्य का सर्जन किया । पादलिप्त की तरंगवइ, विमल सूरि का पउमचरिउ, संघदासगणी का 'वसुदेव हिण्डी', हरिभद्र की 'समराइच्चकहा' आदि इस विषय की गौरवपूर्ण उपलब्धियाँ हैं । इसके अतिरिक्त जिनेश्वर सूरि का 'कथाकोष प्रकरण', जिनचन्द्र का 'संवेग रंगशाला', देवभद्र और गुणभद्र का 'कहारयणकोस', नेमिचन्द्र सूरि का 'आख्यान मणिकोश', आचार्य सुमति सूरिका 'जिनदत्ताख्यान', महेन्द्र सूरि की 'नर्मदा सुन्दरी' सोमप्रभसूरि का 'कुमारपाल प्रतिबोध', जिनहर्ष सूरि का 'रयण सेहर निवकहा' तथा 'रयणवाल कहा', 'सिरिवाल कहा', 'प्राकृत कथा संग्रह' आदि उल्लेखनीय कथा कृतियाँ हैं । इसके अतिरिक्त व्याकरण, निमित्त, ज्योतिष, सामुद्रिक, आयुर्वेद आदि विषयों पर भी प्राकृत भाषा में विपुल साहित्य की सर्जना हुई । अतः यह निर्विवाद रूप से स्वीकार्य है कि प्राकृत का साहित्य मानव संस्कृति की अक्षय निधि है, जिसकी कल्याणी वाणी की लहरियों में गोते लगा-लगाकर मानव युगों-युगों अपने जीवन के नवीन एवं स्वस्थ पथ का संधान करता रहेगा, एक स्वर्णिम लोक के निर्माण का दिव्य आलोक पाता रहेगा । संस्कृत भाषा और साहित्य संस्कृत भाषा, जैसा कि पूर्व बताया जा चुका है, बहुत प्राचीन भाषा है । जैन संस्कृति में साहित्य का प्रचलन, हालाँकि प्राकृत भाषा में ही उपलब्ध है, किन्तु गहराई में जाने पर यह पता चलता है कि जैन धर्म का १४ पूर्व - साहित्य संस्कृत भाषा में ही निर्मित था १३ १३. ( क ) पूर्वाणि संस्कृतानि वेदित व्यानि । -हीर प्रश्न, ३. उल्लास, हीर विजयसूरि (ख) प्रज्ञावन्मुनीन्द्र योग्यानि चतुर्दशापि पूर्वाणि संस्कृतान्येव श्रूयते । -- आचार प्रदीप, सिद्धसेन दिवाकर अधिकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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