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________________ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना हिंसा का अर्थ केवल शारीरिक हिंसा ही नहीं है, प्रत्युत किसी को मन और वचन से पीड़ा पहुँचाना भी हिंसा है । ४ इसके अतिरिक्त जैनों में प्राणी की परिभाषा केवल मनुष्य और पशु तक ही सीमित नहीं है, अपितु उसकी परिधि एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक है । कीड़ी से लेकर कुंजर तक ही नहीं, बल्कि पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में भी गम्भीर विचार किया गया है । अहिंसा के सम्बन्ध में प्रबलतम युक्ति यह है कि सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई भी नहीं चाहता, अतः किसी भी प्राणी का बध मत करो। जिस प्रकार हमें जीवन प्रिय है, मरण अप्रिय है; सुख प्रिय है, दुःख अप्रिय है; अनुकूलता प्रिय है, प्रतिकूलता अप्रिय हैं; मृदुता प्रिय है, कठोरता अप्रिय है; स्वतन्त्रता प्रिय है, परतंत्रता अप्रिय है, लाभ प्रिय है, अलाभ अप्रिय है; उसी प्रकार अन्य जीवों को भी जीवन आदि प्रिय हैं, और मरण आदि अप्रिय हैं । यह आत्मौपम्य दृष्टि हो अहिंसा का मूलाधार है । प्रत्येक आत्मा तात्त्विक दृष्टि से समान है, अतः मन, वचन और काय से किसी को सन्ताप न पहुँचाना ही पूर्ण अहिंसा है । दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भेदज्ञानपूर्वक अभेद आचरण ही अहिंसा है । जैन संस्कृति ने जीवन के प्रत्येक क्रिया-कलापों को अहिंसा की कसौटी पर कसा है । व्यक्ति, समाज और देश के सुख और शांति की आधार - शिला, अहिंसा, मैत्री और करुणा है । भगवान् महावीर ने अहिंसा को ही सब सुखों का मूल माना है । जो दूसरों को अभय देता है, वह स्वयं भी अभय हो जाता है । अभय की भव्य - भावना से ही अहिंसा, मैत्री और समता का जन्म होता है । जब दूसरे को पर माना जाता है, तब भय होता है । जब उन्हें आत्मवत् समझ लिया जाता है, तब भय कहाँ ? सब उसके हैं, और वह सब का है । अतएव अहिंसा का साधक सदा अभय होकर विचरण करता है । मैं विश्व का हूँ, और विश्व मेरा है - यह अहिसा का अद्वैतात्मक दर्शन है । मेरा सुख सभी का सुख है, और सभी का दुःख मेरा दुःख है - यह अहिंसा का नीतिमार्ग है, व्यवहार पक्ष है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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