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प्राथमिकी
भारतीय चिन्तन का निचोड़ है आत्मा और उसके स्वरूप का प्रतिपादन । आत्मा और परमात्मा के स्वरूप को जिस व्यग्रता तथा समग्रता
साथ भारतीय धर्म एवं दर्शनों ने समझने का प्रयास किया है, उतना प्रयास न यूनान के चिन्तकों ने किया है और न यूरोप के विचारकों ने ही । भारतीय धर्म और दर्शन में जड़ प्रकृति का वर्णन व विवेचन भी है. किन्तु वह संवेचन मुख्यतः चैतन्य के स्वरूप को समझने के लिए हैं; उसकी मीमांसा करने * लिए है । जब कि पाश्चात्य दर्शनों में आत्मा का जो वर्णन किया गया है वह गुख्यतः जड़ प्रकृति को समझने के लिए है । जड़ प्रकृति की समीक्षा करने के लिए ही उन्होंने आत्मा का निरूपण किया है । यह प्रत्यक्ष सचाई है कि भारशौय दर्शन आत्मा की खोज का दर्शन है, और पाश्चात्य दर्शन जड़ प्रकृति की खोज का । भारतीय-दर्शन अध्यात्म प्रधान है और पाश्चात्य दर्शन भौतिकता प्रधान ।
भारतीय चिन्तन को अन्तिम परिणति मोक्ष है । मोक्ष साध्य है, धर्म और वर्शन उसकी साधना है । पाश्चात्य दर्शन की तरह भारतीय दर्शन ने धर्म और दर्शन को एक-दूसरे का विरोधी नहीं माना, किन्तु एक दूसरे का सहचर और सहगामी माना है। दर्शन सत्य की मीमांसा तर्क के द्वारा करता है तो धर्म श्रद्धा के द्वारा । दर्शन विचार को प्रधानता देता है तो धर्म आचार को । दर्शन का अर्थ है 'सत्य का साक्षात्कार करना और धर्म का अर्थ है उस सत्य को जीवन में उतारना। दर्शन हमें राह दिखाता है तो धर्म हमें उस राह पर चलने को प्रेरित करता है। अधिक स्पष्ट शब्दों में कहा जाय तो धर्म, दर्शन की प्रयोगशाला है।
धर्म और दर्शन के मूलभूत तत्त्वों के सम्बन्ध में प्रस्तुत पुस्तक में कुछ लिखा गया है। सूर्य के प्रकाश की तरह सत्य है कि पुस्तक ल वने को कलाना प्रारम्भ में मेरे मन में नहीं थी और ये निबन्ध इस हाष्ट से लिखे भी नहीं गये थे, समय-समय पर जो मैंने निबन्ध लिखे उन निबन्धों मे से धम और दर्शन
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