________________
२३०
धर्म और दर्शन
जाता है-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, और भाव से । द्रव्य की अपेक्षा से लोक एक है और सान्त है। क्षेत्र की अपेक्षा से लोक असंख्यात योजन कोटाकोटि विस्तार और असंख्यात योजन कोटाकोटि परिक्षेप प्रमाण वाला है, अतः क्षेत्र की अपेक्षा से लोक सान्त है। काल की अपेक्षा से कोई काल ऐसा नहीं जब लोक न हो, अतः लोक ध्र व है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है, नित्य है । उसका कभी अन्त नहीं है । भाव की अपेक्षा से लोक के अनन्त वर्णपर्याय, गंधपर्याय, रसपर्याय और स्पर्शपर्याय हैं। अनन्त संस्थानपर्याय हैं, अनन्त गुरुलघुपर्याय हैं, अनन्त अगुरुलघुपर्याय हैं। उसका कोई अन्त नहीं । अतः लोक द्रव्य दृष्टि से सान्त है, क्षेत्र दृष्टि से सान्त है, काल दृष्टि से अनन्त है, भावदृष्टि से अनन्त है ।४५ ।
जीव शाश्वत है या अशाश्वत है, प्रश्न का उत्तर देते हए भगवान् ने कहा-गौतम ! जीव किसी दृष्टि से शाश्वत है, किसी दृष्टि से
४५. एवं खलु मए खन्दया ! चउन्विहे लोए पण्णत्ते, तं जहा दब्वओ, खेतओ, कालओ, भावओ।
दव्वओ णं एगे लोए सग्रंते ।
खेत्तमओ णं लोए असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोड़ीओ आयामविक्वंभेणं, असंखेज्जाबो जोयण कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं पन्नत्त, अत्थिपुण सोते ।
कालयो रणं लोए , कयावि न आसि, न कयावि न भवति, न कयावि न भविस्सति । भविसु य भवति य भविस्सइ य, धूवे णितिए सासते, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, णिच्चे, णस्थि पुण से अंते ।
भावओ णं लोए अणंता वण्णपज्जवा गंधपज्जवा रसपज्जवा फासपज्जवा अणंता संठाणपज्जवा, अणंता गरुयलहुयपज्जवा अणंता अगरुलहुयपज्जवा नत्थि पुण से अन्ते ।
से त खन्दगा ! दव्वओ लोए सअंते, खेत्तओ लोए सअन्ते. कालतो लोए अणन्ते, भावतो लोए अणन्ते ।
-भगवती २।११०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org