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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण अवशिष्ट नहीं रहा । परन्तु, दण्डी, सुबन्धुर, बाण धनंजय', त्रिविक्रम भट्ट, और गोवर्धनाचार्य आदि ने इसका उल्लेख अपनी-अपनी रचनाओं में, आदर के साथ किया है ।
इसके तीन रूपान्तर आज मिलते हैं - (१) नेपाल के बुद्धस्वामी रचित 'बृहत्कथा - श्लोक-संग्रह' (८वी, हवी ई. शती) । यह रचना भी आज अंशतः उपलब्ध है । इसके वर्तमान स्वरूप में २८ सर्ग और ४५२४ पद्य है । इसकी भाषा में, कहीं-कहीं पर प्राकृत स्वरूप दिखलाई देता है, जिससे यह सम्भावना अनुमानित होती है कि ये अंश मूल ग्रन्थ से लिए गए होंगे ।
(२) काश्मीर के राजा अनन्त के आश्रय मे रहने वाले कवि क्षेमेन्द्र द्वारा रचित - 'बृहत्कथामञ्जरी' (१०३७ ई० ) । इसमें ७,५०० श्लोक हैं । (३) सोमदेव कृत ' कथासरित्सागर' (१०६३ - १०९१ ई०) में १२४ तरंगें और २०२०० पद्य हैं । इसके सरस आख्यान मनोरंजक हैं और हृदयंगम शैली में लिखे गये हैं । ग्रन्थकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसकी रचना का आधार गुणाढ्य की बृहत्कथा है ।" कथा - सरित्सागर, विश्व का विशालतम कथा - संग्रह ग्रंथ है ।
कीथ, बुद्धस्वामी के 'बृहत्कथा- श्लोक - संग्रह' को गुणाढ्य की रचना का विशुद्ध रूपान्तर मानते हैं । काश्मीर की जनश्रुति के अनुसार यह श्लोकबद्ध थी । किन्तु दण्डी ने, इसको गद्यमय बतलाया है ।" बृहत्कथा, भारतीय साहित्य में उपजीव्य ग्रन्थ के रूप में समादृत है । इस दृष्टि से, इसे रामायण और महाभारत के समकक्ष माना जा सकता है ।
'वैतालपञ्चविंशतिका' भी बृहत्कथामंजरी और कथासरित्सागर की पद्धति पर लिखी गई रचना है । इसमें, एक वैताल ने उज्जयिनी नरेश विक्रमादित्य को, पहेलियों के रूप में २५ कथाएं सुनाई हैं । ये, मनोरंजक
१ काव्यादर्श - १ / ३८
३ हर्षचरित प्रस्तावना
५ नलचम्पू १ / १४
७
प्रणम्य वाचं निःशेषपदार्थोद्योत दीपिकाम् । बृहत्कथायां सारस्य संग्रहं रचयाम्यहम् ||
८ काव्यादर्श - १/ २३, ६८
२ वासवदत्ता (सुबन्धु)
४ दश रूपक १ / ६८ ६ आर्यासप्तशती पृष्ठ- १३
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- बृहत्कथासार - पृष्ठ - १. पद्य ३
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