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________________ ( ६) सर मिला । तव मुझे लगा, जैन कथा साहित्य का प्रभाव बौद्ध एवं वैदिक कथा साहित्य पर ही नहीं, किन्तु पश्चिमी कथा साहित्य पर भी पर्याप्त मात्रा में पड़ा है तथा भारतीय संस्कृति के मूल बीज इस कथा साहित्य में आज भी सुरक्षित हैं । आगम कथा साहित्य का सर्वांगीण विश्लेषण प्रस्तुत प्रकरण में किया गया है। इसके पश्चात् सिद्धर्षिकृत उपमितिभव प्रपंच महाकथा पर एक विस्तृत प्रस्तावना लिखने का प्रसंग आया । यह कथा स्वयं में ही एक महा रूपक कथा है, जिसमें भारतीय कथा साहित्य के निखिल स्वरूप का दर्शन होता है । इस प्रस्तावना प्रसंग पर आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य का अनुशीलन करने का अवसर मिला और उस विषय पर अपना चिन्तन, मनन उक्त प्रस्तावना में अंकित है। इस प्रकार कुल तीन बृहद प्रयासों की अलग-अलग निष्पत्ति के रूप में प्रस्तुत पुस्तक की संयोजना हुई है, जिसमें जैन कथा साहित्य की विकासयात्रा की एक परिक्रमा पूर्ण हो जाती है । मुझे विश्वास है, मेरे इस प्रयास से जैन कथा साहित्य के समग्र नहीं तो बहुलांश स्वरूप पर प्रकाश पड़ेगा और अनुसन्धान करने वालों को काफी सामग्री मिल सकेगी। मेरी ज्ञानयात्रा के प्रकाश स्तंभ, पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद तथा श्रमणसंघ के आचार्य सम्राट श्री आनन्दश्रीजी महाराज का वरदहस्त मुझे प्राप्त हुआ है । मैं सोचता हूँ इन दो महापुरुषों की कृपा से मेरी जीवनयात्रा सदा ऊर्ध्वमुखी बनी रहेगी। परमादरणीया पूज्या स्वर्गीय मातेश्वरी महासती प्रभावतीजी म. व ज्येष्ठ भगिनी महासती श्री पुष्पवतीजी की प्रबल प्रेरणा साहित्य सृजन के लिए सम्बल रूप रही है। श्रीयुत स्नेह सौजन्यमूर्ति कलमकलाधर श्रीचन्दजी सुराना एवं डॉ. आदित्य प्रचंडिया प्रभृति का स्नेहपूर्ण सेवा सहकार संयोजन आदि को स्मरण करते हुए प्रस्तुत पुस्तक पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए मन प्रसन्न है, हृदय आनन्द विभोर है । श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय उदयपुर अक्षय तृतीया दि० ८ मई १९८६ -उपाचार्य देवेन्द्रमुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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