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________________ अपने को जानना : परमात्मा को जानना है | ७६ जापानी, अरबस्तानी हूँ, इंग्लिस्तानी, जर्मन या अमेरिकन आदि हैं। किन्तु ये सब उत्तर शरीर के हैं, शरीर से सम्बन्धित हैं। आत्मा के या आत्मा से सम्वन्धित ये उत्तर नहीं है। शरीर से सम्बन्धित ये जितने भी उत्तर हैं, वे सब कर्मोपाधिक हैं। क्योंकि शरीर या शरीर से सम्बन्धित परिवार, जाति, धर्मसम्प्रदाय, कौम, वर्ण, वंश, गति आदि जितने भी साधन मनुष्य को प्राप्त होते हैं, वे सब शुभनामकर्म या अशुभनामकर्म के उदय से प्राप्त होते हैं। इसलिए ये सारे परिचय शरीर के हैं, शरीर से सम्बद्ध हैं। शरीर के संयोग से ये संयुक्त हैं, मानव-शरीर प्राप्त हुआ है, उसके साथ ही ये सब प्राप्त होते हैं। ये सभी क्षणिक हैं, नाशवान् हैं। शरीर के नष्ट-मत होते ही, ये सब नष्ट हो जाते हैं। इनका कोई अस्तित्व नहीं रहता। केवल नाम लेने या याद करने को ये कुछ संकेत रह जाते हैं। इसके अतिरिक्त जो अपने पद या प्रतिष्ठा के आधार पर अपना परिचय देते हैं कि मैं सत्ताधीश हूँ, शासक हूँ, मंत्री हूँ, राष्ट्रपति हूँ, धनिक हूँ, व्यापारी हूँ, सज्जन हूँ, परोपकारी हूँ, अथवा जनसेवक हूँ, दीन-हीन, पीड़ित आदि हूँ, ये उत्तर भी अहंकार या दैन्य से युक्त हैं। और शरीर से ही सम्बन्धित हैं कर्मजन्य हैं, क्षणिक् एवं नाशवान हैं। आत्मा को जाने बिना परमात्मा को जानना-पाना असम्भव वास्तव में ये उत्तर ऐसे नहीं है, जो आत्मा को परमात्मभाव की ओर गति-प्रगति करने में सहायक हों । अथवा अविनाशी, शाश्वत शुद्ध आत्मा को जानने-पहचानने में सक्षम हों । आत्मा को शुद्ध एवं शाश्वतरूप में जाने बिना यथार्थरूप से अपने आपको जानना (आत्मज्ञान), पहचानना (आत्मपरिचय) नहीं है। और अपने आपको (आत्मा को) शुद्ध शाश्वत, चैतन्यस्वरूप, ज्ञानानन्दमय जाने बिना परमात्मभाव को जानना और पाना सम्भव नहीं है। इसीलिए 'योगसार' में स्पष्ट कहा गया है "अप्पा अप्पउ जइ मुणइ, तउ णिव्वाणं लहइ । पर-अप्पा जइ महि, तउ संसारं भमेइ ।।1 "यदि आत्मा स्वयं (आत्मा) को जान-पहचान लेता है, अथवा आत्मा का मनन-चिन्तन करता है तो निर्वाण पद (परमात्म-पद) को १ योगसार १२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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