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आत्मा को कहाँ और कैसे खोजें ? | ६१
आत्मा को आँखों से देखा जाना असम्भव है आध्यात्मिक जगत् में आत्म-साक्षात्कार करने की चर्चा बहुत चलती है। परन्तु आत्मा अमुर्त होने से इन चर्मचक्षुओं से जाना-देखा नहीं जा सकता। आत्मा को स्थितप्रज्ञा से या अन्तःस्थित विवेक बुद्धि से अनभव किया जा सकता है। इसे ही आध्यात्मिक भाषा में आत्म-साक्षात्कार या आत्मदर्शन कहते हैं। परन्तु यदि कोई बुद्धिवादी चाहे कि मैं आत्मा को हथेली पर रखे हुए आंवले की तरह प्रत्यक्ष देख लूं, यह असम्भव है।
___ एक बार कुछ विद्यार्थी भूतपूर्व राष्ट्रपति महान दार्शनिक सर्वपल्लो डॉ० राधाकृष्णन से आत्मिक तत्त्वज्ञान को चर्चा करने आए। आत्मा के विषय में जब चर्चा चली तो वे कहने लगे-डॉ० साहब ! हम आत्मा को तभी मान सकते हैं, जब आप उसे हथेली पर लेकर प्रत्यक्ष बताएँ।" इस पर से उन्होंने कहा-“विद्यार्थियो ! आत्मा है, वह अनुभवगम्य है। यह सनातन सत्य है। तुम न मानो, इससे आत्मा का अस्तित्व मिट नहीं जाता। वह त्रिकाल स्थायी शाश्वत पदार्थ है । तुम कहते हो-इसे प्रत्यक्ष बताओ; किन्तु आत्मा ऐसा तत्व है, जिसे स्थिरबुद्धि वाला प्राज्ञ ही जान सकता है । तुममें से जो सबसे अधिक बुद्धिमान हो, वह आगे आए।"
उन्होंने एक सबसे बुद्धिमान विद्यार्थी को आगे कर दिया । डॉ. राधाकृष्णन् ने कहा-"मैं इसे पहचानता नहीं, तुम्हारे कथन पर विश्वास करके मान लेता हूँ कि यह विद्यार्थी महाबुद्धिमान है। अब एक काम करो। इसकी बुद्धि निकाल कर टेबल पर रखो। फिर मैं भी अपनी आत्मा निकाल कर टेबल रख दूंगा।"
विद्यार्थीगण-ओह ! डाक्टर साहब ! कैसी बात करते हैं आप? क्या बुद्धि दिमाग में से निकालकर बताने की या आँखों से देखने की वस्तु है ?"
"तो फिर बुद्धि को कैसे जाना जाए ?" उन्होंने कहा।
विद्यार्थियों ने कहा-बुद्धि तो इन्द्रियों से देखने-सुनने आदि की चीज नहीं है, वह तो सिर्फ अनुभव करने की चीज है। हमारा यह विद्यार्थी उसका अनुभव कर पाता है। बुद्धि के परिणामस्वरूप उसकी शक्ति को हम देख सकते हैं, परन्तु बुद्धि तो निकाली या दिखाई नहीं जा सकती।"
___ डॉ० राधाकृष्णन्- "प्यारे मित्रो ! यही बात आत्मा के सम्बन्ध में समझो। आत्मा केवल अनुभव करने की चीज है । वह आँखों से साक्षात् देखी नहीं जा सकती। परिणामस्वरूप देह में होने वाली-खाना-पीना,
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