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________________ ४६ | अप्पा सो परमप्पा आग जला सकती है, न ही पानी इसे गला सकता है, और न हवा इसे सुखा सकती है । यह अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य, अक्लेद्य और अशोष्य है । 1 यह सनातन, शाश्वत और अजन्मा है । अनादि निधन है । जो भी परिवर्तन होता है, वह पर्यायों का होता है, द्रव्य का नहीं । इसे सोने के दृष्टांत द्वारा समझिए । सोने का हार, अंगूठी, मुकुट, कड़े आदि विविध आकार के पदार्थ बनाए। ये सोने की पर्यायें हैं। एक पर्याय उत्पन्न हुई और नष्ट हो गई, परन्तु उनमें द्रव्य तो नष्ट नहीं होता, वह तो जैसा है, वैसा ही रहता है । सुनार ने सोने का कड़ा बनाया, यह कड़े का उत्पाद है, और फिर कड़े को मिटा दिया, उसकी अंगूठियाँ बना दीं। इस प्रकार कड़े का पर्याय नष्ट हो गया । इन दोनों पर्यायों में सोना बदला नहीं । वही उसकी ध्रुवता है । द्रव्य का एक लक्षण यह भी किया गया है'गुण- पर्यायवद् द्रव्यम् 2 S गुण और पर्याय का जो आश्रय रूप है, वह द्रव्य है । द्रव्य के साथ सदव रहने वाला अविनाशी धर्म गुण कहलाता है और द्रव्य में समय-समय पर क्रम से जो विविध अवस्था रूप परिणमन होता रहता है, वह पर्याय है । आत्मा द्रव्य है । जहाँ द्रव्य होता है, वहाँ पर्यायें अवश्य होती हैं । अतः आत्मा में पर्यायदृष्टि से उत्पाद व्यय हुआ करते हैं । गतिरूप शरीर को धारण करना आत्मा की वैभाविक पर्याय है । आत्मा अपने आप में मनुष्य तिर्यञ्च आदि नहीं है । आत्मा का शुद्ध स्वरूप शरीरादि धारण करना नहीं हैं । शरीरादि धारण करना कर्मों के कारण होता है । जहाँ तक आत्मा कर्मसहित है, वहाँ तक यह अनेक शरीर धारण करता है । मृत्यु होने पर अर्थात् - एक शरीर छूटने पर दूसरा देह धारण करता है, परन्तु देह की उत्पत्ति और विनाश एक ही जीव का, चाहे जितनी बार हो जाए, १ (क) नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥ - भगवद्गीता २ / २३-२४ (ख) से ण छिज्जइ, ण भिज्जइ, ण उज्झइ, ण हम्मइ कंचणं सव्वलोए । - आचारांग १/३/३/४०० २ तत्त्वार्थ सूत्र अ. ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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