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________________ 1 आत्मा का अस्तित्व | २५ चार्वाक दर्शन द्वारा आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व का निषेध प्राचीनकाल में भारतवर्ष में 'चार्वाक' नामक दर्शन था । उसका प्रर्वतक चार्वाक तथा उसके अनुयायी, आत्मा के अस्तित्व को कतई नहीं मानते थे । वे कहते थे- यह शरीर ही सब कुछ है । पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश, इन पाँच महाभूतों से यह उत्पन्न होता है । इन्हीं पाँच के संयोग से एक विशिष्ट प्रकार की शक्ति उत्पन्न होती है, जिसे चेतना कहना हो तो भले ही कह दो। जिस प्रकार गोबर और मूत्र के संयोग से बिच्छू पैदा हो जाते हैं, उसी प्रकार इन पाँच भूतों के मिलने से विशेष प्रकार की शक्ति उत्पन्न होती है, जिसके आधार से शरोर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि आदि अपने-अपने कार्य (विषय) का संचालन या विषयों में प्रवृत्ति होती है । जब ये पाँच भूत बिखर जाते हैं, अलग-अलग हो जाते हैं, तब वह विशिष्ट शक्ति भी चली जाती है, जिसे चेतना कहा जाता है, बस वह यहीं समाप्त हो जाती है । चेतना समाप्त होते ही सब कुछ समाप्त । यह जीवन भी यहीं समाप्त हो जाता है । यह तथाकथित चेतना बस वर्तमानकालिक ही होती है । इसके पश्चात् कुछ भी नहीं, और इससे पूर्व भी कुछ नहीं । न तो पहले चेतना थी, और न बाद में चेतना रहेगी । अर्थात् न तो पूर्वजन्म है और न ही पुनर्जन्म है । न भूत है, न भविष्य, केवल वर्तमान ही सब कुछ है । यह खेल यहीं खत्म हो जाता है ।" इसके लिए चार्वाक दर्शन का एक श्लोक है " यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥" जब तक जीओ, सुख से जीओ, कर्ज करके घी पीओ । इस शरीर के भस्म हो जाने पर न पुनः आना है, और न कहीं जाना है । १ चार्वाक दर्शन के सिद्धान्त की विशेष जानकारी के लिए देखिए 'तत्त्वोपप्लवसिंह' ग्रन्थ । २ देहः स्थौल्यादियोगाच्च स एवात्मा न चापरः । न स्वर्गो नापवर्गों नैवात्मा पारलौकिकः । - चार्वाक दर्शन ही आत्मा है । पाँच स्थूल तत्वों (महाभूतों) के संयोग से बनी हुई यह देह इसके सिवाय आत्मा नाम का कोई पदार्थ नहीं है । न ही कोई स्वर्ग और न अपवर्ग (मोक्ष) है, न आत्मा किसी परलोक में जाती है । उस आत्मा का - सं० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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