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________________ ३८० | अप्पा सो परमप्पा तुम्हारी रक्षा करने में या शरण देने में समर्थ होते हैं, और न ही तुम उनका रक्षण करने या उन्हें शरण देने में समर्थ होते हो।"1 निष्कर्ष यह है कि व्यावहारिक जीवन में अकेलेपन की अनुभूति सुखदायी और आनन्दप्रद हो सकती है । अनेक व्यक्तियों और वस्तुओं को पाक र चिन्ताग्रस्त मनुष्य क्षुब्ध और अशान्त हो जाता है। अतः पहले से ही व्यक्ति अनेक वस्तुओं और व्यक्तियों से आसक्तियुक्त लगाव न रखकर सजीव- निर्जीव परपदार्थों और विभावों में न फंसता, उन्हें अपने न मानता एवं एकाकीपन का अप्रमत्त होकर अभ्यास करता तो किसी भी परिस्थिति में उसे दुःख न होता। अकेलेपन से महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ आज लोग अकेलेपन से घबराते हैं। वे सोचते हैं-अकेले होने पर हमें कौन पूछेगा ? कौन हमारी सेवा करेगा ? कौन समय पर हमारी सहायता करेगा? जिन्हें आत्मा की अनन्त शक्तिमत्ता और अपने पुण्यकर्मों पर विश्वास नहीं हैं, वे ही ऐसा सोचते हैं। जिनका आत्मविश्वास दृढ़ हो चुका है । वे अकेलेपन से घबराते नहीं हैं । यह बात अनुभवसिद्ध है कि जो व्यक्ति दूसरों से सेवा और सहायता लेने से निरपेक्ष और निःस्पह रहे हैं, उन्होंने आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक प्रगति की है । रमण महर्षि ने तिरुवन्नामलै के निकटवर्ती गुफा में अनेक हिंस्र जन्तुओं के बीच अकेले असहाय और सुखसुविधा निरपेक्ष रहकर ही अपनी आत्मशक्ति बढ़ाई थी। योगी अरविन्द ने कलकत्ते की अलीपुर जेल की कोठरी में अकेले रहकर कई आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किये थे। उन्होंने खाली समय का उपयोग अपने आत्मविकास के हेतु योगसाधना में किया था । लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने मांडले जेल में एकाकी नजरबन्द रहकर अपना चिन्तन-मनन भगवद्गीता जैसे आध्यात्मिक ग्रन्थ पर 'गीता रहस्य' ग्रन्थ लिखने में किया था। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने जेलों में राजनैतिक बंदी के रूप में एकाकी रहकर अपना समय विश्व इतिहास की झलक, 'हिन्दुस्तान की कहानी' नामक बहुमुल्य पुस्तकें लिखने में व्यतीत किया। उन्हें एकाकीपन १ ....नालं ते तव ताणाए वो सरणाए वा। तुमंपि तेसि नालं ताणाए वा सरणाए वा....। -आचारांग श्र. १ अ. २ उ. ४ २ गुप्त भारत की खोज (ले. पाल ब्रिटन) से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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