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________________ एकाकी आत्मा : बनतो है परमात्मा ! ३७६ वस्त्रादि, भरण-पोषण विवाह तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की रातदिन उसे चिन्ता सताती रहती है । जब व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है और घर का काम करने और कमाने में असमर्थ हो जाता है, तब पारिवारिक स्वार्थसिद्धि न होने पर परिजन-स्वजन प्रायः उसके प्रति उपेक्षा भाव रखने लगते हैं, उसकी किसी अच्छी बात को भी सुनी-अनसुनी कर देते हैं । बूढ़ा सोचता है-तीस साल पहले सारा परिवार मेरे आदेश पर चलता था। मेरी आज्ञा होते ही सब हाथ जोड़कर खड़े हो जाते थे। आज मेरे पुत्र, पत्नी, पुत्रियाँ, पुत्रवधुएँ कोई मुझे नहीं पूछतीं। सब मेरा तिरस्कार एवं उपहास करते हैं । भला बताइए, इतने बड़े परिवार के होते हुए वृद्ध क्यों होता है ? इसी आशय का निरूपण भगवान् महावीर ने किया है माया पिया एहसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते तव ताणा- लुप्पंतस्स सकम्मुणा ।।। जब व्यक्ति अपने दुष्कर्मों से जीवन में नष्ट भ्रष्ट दुःखित हो रहा हो, तब माता, पिता, भ्राता, भार्या, औरसपुत्र या पुत्रवधू कोई भी उसकी रक्षा करने में, उसे बचाने में समर्थ नहीं होते। बल्कि आचारांग सूत्र के अनुसार-"वह मूढ मानव इस प्रकार दूसरों के लिए क्रू र कर्म करता हुआ, उस दुःख से, (धनादि के नष्ट होने से उत्पन्न दुःख से) मूर्ख बनकर विपर्यास (विपरीत परिणाम) को प्राप्त करता है।" प्रायः लोग चिन्तातुर होकर यही सोचते हैं कि 'इसकी अपेक्षा तो मैं अकेला होता तो आज दुःखी न होता । आज तो मैं अनेकों अपनों के होते हुए भी दुःखो हो रहा हूँ ।' इन सब दुःखों को देखते हुए क्या मनुष्य यह कहने को तैयार है कि बहजन समुदाय या प्रचुर-धन-साधन आदि होने से मनष्य निश्चित, सुखी या शांतिमय जीवन बिताता है ? कहावत है- 'सौ सगे, सौ दुःख ।' व्यक्ति स्वयं ही अपने सुख-दुःखों का कर्ता है। ___ आचारांग सूत्र के अनुसार-"रोगादि उत्सन्न होने पर न तो वे १ उत्तराध्ययन सूत्र अ. ६ गा. ३ २ "इअ से परस्स अट्ठाए कूराणि कम्माणि वाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढ विप्परियासमवेति ।" -आचारांग सूत्र श्रु. १ अ. २ उ. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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