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________________ ३५८ | अप्पा सो परमप्पा 'उन प्राणियों का ज्ञान अज्ञान के कारण आवृत हो जाता है, इस कारण वे मोहयुक्त हो जाते हैं । ज्ञानियों के नित्यवैरी काम-मोहादि आत्मज्ञान को ढक लेते हैं । निष्कर्ष यह है कि परमात्मा का निवास तो प्रत्येक प्राणी के हृदय में है, किन्तु उपर्युक्त कारणों से जिस प्राणी के हृदय का द्वार बन्द हो जाता है, अथवा जो प्राणी परमात्मा के पवित्र सम्यग्ज्ञानादि की किरणों को लेने के लिए आतुर, जिज्ञासू, उत्सूक या उत्कण्ठित नहीं हो पाता और हृदयमंदिर के कपाट बन्द कर लेता है, वह परमात्मा की दिव्यध्वनि या दिव्य. सन्देश ग्रहण या श्रवण नहीं कर पाता। आकाशवाणी केन्द्र से रेडियो में सभी स्टेशनों से ब्रॉडकास्टिंग (समाचार प्रसारण) किया जाता है। कभी-कभी तो एक ही समय में कई स्टेशन समाचार-प्रसारण के खले रहते हैं, किन्तु रेडियो या ट्रांजिस्टर का स्विच खोला न जाए और अमुक स्टेशन पर संकेतदर्शक सुई लगाई न जाए तो वह समाचार, वार्तालाप, संगीत या संवाद सुनाई नहीं देगा, उसे वह व्यक्ति ग्रहण न कर सकेगा। इसी प्रकार जिस मनुष्य या मनुष्येतर प्राणी के हृदयरूपी स्टेशन का स्विच खुला नहीं होगा, वह हृदय-स्थित परमात्मा की दिव्यध्वनि, अव्यक्त अन्तःप्रेरणा या स्फुरणा को ग्रहण या श्रवण नहीं कर सकेगा। जो अपने हृदयरूपी स्टेशन का स्विच ऑन (खुला) कर देगा, वह हृदयस्थ परमात्मा के सन्देश, प्रेरणा आदि से अवश्य लाभान्वित हो सकेगा। _जिस प्रकार रेडियो पास में पड़ा रहने पर और समाचार-प्रसारित होते रहने पर भी उस स्टेशन का स्विच न खोलने पर व्यक्ति उन समाचारों के ग्रहण-श्रवण से लाभान्वित नहीं हो पाता, इसी प्रकार परमात्मा का दिव्यसन्देश प्राणी के हृदयरूपी स्टेशन से अव्यक्तरूप से सतत प्रसारित हो रहा है, लेकिन व्यक्ति अपने हृदयद्वार खुले न रखे तो वह उनके दिव्यसन्देश के ग्रहण-श्रवण से लाभान्वित नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में प्रभु का दिव्यसन्देश ग्रहण-श्रवण न कर पाने के कारण वह प्राणी परमात्मा १ (क) “अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ।" -भगवद्गीता (ख) आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा ॥ गीता ३/३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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