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________________ परमात्म-भाव से भावित आत्मा : परमात्मा | ३३५ वेशभूषा धारण करके दर्शकों के समक्ष उपस्थित होते हैं, उस समय वे ठीक उसी तरह का अभिनय, आकृति, अंग-चेष्टा तथा वाणी और भाव प्रकट करते हैं। जब वे राजा या भिखारी का पार्ट अदा करते हैं, तब राजा या भिखारी के ही भावों से भावित होकर रहते हैं। बरे और अच्छे दोनों प्रकार के भावों से भावित हो सकता है अच्छे विचारों से भी मन को भावित किया जा सकता है, और बुरे विचारों से भी । जो व्यक्ति चोरी, हत्या, डकैती, करता आदि बुरे काम करता है, वह पहले अपने मन को चोरी, हत्या, डकैती, क्रूरता आदि के भावों से भावित करता है। हर आदमी चोरी, हत्या, डकैती, करता आदि दुष्कृत्य नहीं कर सकता। जो क्र रता, कठोरता आदि के विचारों से अपने मन को भावित कर लेता है, वही ऐसे बुरे काम कर पाता है। अच्छे काम करने के लिये मन को अच्छे विचारों से भावित करना पड़ता चोर आदि भी परमात्मभावों से भावित हो सकते हैं ___ आपने देखा या सुना होगा कि चोर, डाकू, दस्यू एवं हत्यारा भी जब अपनी अन्तरात्मा को तप, संयम से भावित कर लेता है तो अतिशीघ्र तपस्वी, संयमी, महात्मा और यहाँ तक कि सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा भी बन जाता है। चिलातीपुत्र बहुत बड़ा चोर था। उसके आतंक से बड़े-बड़े शक्तिशाली लोग भी थर्राते थे। एक बार उसने ऋ रता के भावों से भावित होकर अपने प्रति प्रेम रखने वाली श्रेोष्ठि-कन्या की हत्या कर डाली। फिर एक हाथ में उस कन्या का मस्तक और दूसरे हाथ में खून से सनी तलवार लिये वह जंगल में भागा जा रहा था । श्रेष्ठीपरिवार और पुलिस जन उसका पीछा कर रहे थे। मार्ग में एक शान्त, स्वस्थ, निश्चिन्त एवं तेजस्वी साधु को उसने ध्यानमुद्रा में खड़े देखा । अशांत, अस्वस्थ चिलातीपुत्र उस साधु को देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ। पास में जाकर उसने १ देखिए ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में चिलातीपुत्र का वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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