SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आलम्बन : परमात्म-प्राप्ति में साधक या बाधक ? | ३२३ प्राकृतिक प्रकोप, घोर अरण्य आदि में आहारविहार इत्यादि से साधुवर्ग की यथाकल्प सेवा करना अपना धर्म समझता है। प्राचीनकाल में घोर जंगलों को निर्विघ्न, निरापद रूप से पार कराकर विहार कराने तथा यया कल्प आहार-औषधादि से तप-संयम के आराधक साधुवर्ग को सेवा करने में धर्मनिष्ठ सार्थवाह सहायक होता था। साथ ही प्रशस्त गृहस्य साधु वर्ग के संयमपालन में, तथा साधुधर्म से विचलित या भ्रष्ट होते हुए किसी साधु या साध्वी को साधुधर्म में, साध्वाचार में स्थिर करने तथा संयम पालन के लिए उत्साहित करने में एवं नवदाक्षित या अस्थिर साधु-साध्वी को वात्सल्यभाव से शिक्षा देकर साधु धम में प्ररित करने में प्रत्येक प्रकार से सहायक आलम्बनदाता होता है। इसलिए ऐसे प्रशस्त गृहस्थ नरनारी को शास्त्रों में 'अम्मा-पिउ समाणा'1--माता-पिता के समान वत्सल कहा गया है। अपने क्षेत्र या समाज के किसो भो सदस्य पर संकट, आफत या दुःख आ पड़ा हो तो उसे दूर करने में ऐसा गाथापति सहयोगी व सहभागी बनता है। ऐसे प्रशस्त गायापति के लिए उपासक दशा सूत्र में कहा गया है मेढी, पमाणे आहारे आलंबणं चक्खू वह गृहस्थ अपने समाज तथा कुटुम्ब के लिए मेढीभूत (स्तम्भ के समान उत्तरदायित्व वहन करने वाला), प्रमाण भूत, आधार, आलम्बन और चक्षु अर्थात्-नेता या पथप्रदर्शक होता है । पारिवारिक जीवन में पत्नो भी पति के लिए धर्म-सहायिका, धर्मकार्य में सहयोगी, धर्मरक्षा करने में तत्पर तथा धर्म से डिगते या विचलित होते हुए पति को धर्म में स्थिर करने में आलम्बन रूप होती है। इसीलिए भारतीय संस्कृति में गृहिणी को केवल पत्नी ही नहीं, धर्मपत्नी कहा जाता है। उपासक दशांगसूत्र में धर्मपत्नी के गुणों का वर्णन करते हुए कहा है “भारिया धम्म-सहाइया, धम्म-बिईज्जिया, धम्माणुरागरता, सम सुह-दुक्ख-सहाइया।"3 १ ठाणांग सूत्र २ उपासकदशांग १/५ ३ वही, ७/२२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy