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________________ आलम्बन : परमात्म-प्राप्ति में साधक या बाधक ? | ३१६ अन्तकत्दशा सूत्र में ध्यानारूढ़ गजसुकुमाल मुनि की घटना प्रसिद्ध है। महाकाल श्मशान में सोमिल ब्राह्मण द्वारा दी गई असह्य यातना, जिसमें उनके मुण्डित मस्तक पर चारों ओर गीली मिट्टी की पाल बाँधकर उसके बीच में खैर के धधकते अंगारे रख दिये । इस घोर पीड़ा के समय भी समभावी गजसुकुमाल मुनि ने सोमिल को अपराधी, वैरी या द्वषो नहीं माना, बल्कि उसे अपने कर्मक्षय करने में सहायक मान कर उस पीड़ा को समभाव से सहन किया। तीर्थंकर अरिष्टनेमि प्रभु ने भी गजसुकुमाल मुनि को पीड़ा देने वाले सोमिल ब्राह्मण के लिए श्रीकृष्ण जी से कहा था--'उसने गज कुमाल मुनि को सहायता दी है, उस पर किसी प्रकार का द्वष मत करो।'1 इसके अतिरिक्त ऐसे क्रूर प्राणी से जब भी वास्ता पड़ता है, तो संयमी, निर्ग्रन्थ अहिंसक साधु ऐसा विचार करे कि यह मेरी निर्भयता तथा देहाध्यास के त्याग-वैराग्य एवं समभाव की साधना की परीक्षा करने में निमित्त बना है। यह तो मेरी अहिंसा, निर्भयता और समता आदि की साधना में सहायक है, आलम्बन है । 'अपूर्व अवसर' के अनुसार मुझे मानो आज परम मित्र का सुयोग मिला है, ऐसा मान कर चले । अरुणाचल (तरुवन्नामले स्थित आश्रम) की गुफा में रमण महर्षि ने जब सर्वप्रथम निवास किया था तो अनेक साँप वहाँ रहते थे, वे आ-आकर उनके शरीर पर लिपट जाते थे। परन्तु किसी भी साँप को भगाने या मारने का प्रयास उन्होंने नहीं किया, न ही वे साँपों से डरे । धीरे-धीरे वे साँप भी उनके परम मित्र बन गये । इस दृष्टि से षट्कायिक जीवों का आलम्बन धर्माचरणकर्ता के लिए श्रेयस्कर है। १ अन्तकृदशांग सूत्र, गजसुकुमार-अधिकार । एकाकी विचरतो वली श्मसानमां, वली पर्वतमां वाघ सिंह-संयोग जो । अडोल आसन ने मनमां नहिं क्षोभता, परममित्रनो जयाणे पाम योग जो ॥११॥ ३ गुप्त भारत की खोज (डा० पाल ब्रिटन द्वारा लिखित अंग्रेजी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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