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३०८ | अप्पा सो परमप्पा
एवं वीतराग महापुरुषों द्वारा अनुभूत परमात्मा के मोक्षधाम (सिद्धगति) को पाने का महामार्ग है । यही समस्त साधकों के परम आत्मानन्द का एकमात्र उपाय है। परमात्मतत्व के आलम्बन का माहात्म्य
परमात्मतत्व कहें या शुद्ध आत्मतत्व कहें, बात एक ही है; क्योंकि निश्चय दृष्टि से शुद्ध आत्मा ही परमात्मस्वरूप है। अतः परमात्मतत्व का आलम्बन ही समस्त दुःखों से मुक्त कराने वाला है ।
यह सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा के अनन्तज्ञानादि चतुष्टय से युक्त स्वयं परमात्मा होने का राजमार्ग है। परमात्मतत्व सर्वतत्वों का सारभूत है। त्रिकाल-निरावरण-नित्यानन्दस्वरूप है, एक रूप है। स्वभाव की शाश्वत उपलब्धि का उपाय है। जन्म-जरा-मरण-आधि-व्याधि-उपाधि आदि रूप संसार-रोग का एकमात्र महौषध है। स्वरूप रमणरूप चारित्र का मूल है, सर्वदुःखों का अन्त करने वाला, मुक्ति का प्रमुख कारण है । संसार-सागर से पार करने वाला है।
जब तक आत्मार्थी साधक की दृष्टि ध्रुव, अचल परमात्मतत्व पर नहीं गिरकर क्षणिक भावों-पर्यायों पर पड़ती है,तब तक शुभ-अशुभ भावों के औपाधिक विकल्पों का शमन नहीं होता। परन्तु जब उसकी दृष्टि में परमात्मतत्वरूप ध्रव आलम्बन जम जाता है,तभी से वह दृष्टि की अपेक्षा से कृतकृत्यता का अनुभव करता है । विधि-निषेध के विकल्पों का विलय हो जाता है । अपूर्व सम रसभाव का वेदन होता है। निजस्वभावरूप परि. णमन होने लगता है और कृत्रिम औपाधिक विकल्पों का ज्वार क्रमशः शान्त होता जाता है । इस नित्य निरंजन निज परमात्मतत्व के आलम्बन रूप मार्ग से भूतकाल में सभी मुमुक्षु सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा बनकर सिद्धिगति (परमात्मधाम) में पहुँचे हैं, वर्तमान काल में भी पहुँचते हैं और भविष्य में भी पहुंचेंगे। जैसे कि आगम मे कहा है-'जैसे समस्त प्राणियों का आधार (अधिष्ठान) पृथ्वी है, वैसे ही सभी बुद्ध-मुक्त महापुरुषों का आधार (आलम्बन) शान्ति (निर्वाण या परमात्मतत्व) है ।1
१ जे य बुद्धा आइक्कंता, जे य बुद्धा अणागया ।
सन्ति तेसिं पइट्ठाणं, भूयाणं जगई जहा ।।
-सूत्रकृतांग
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