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परमात्मा को कहाँ और कैसे देखें ? | २२७
कठिन भिक्षाचरी का, उनके द्वारा महावतादि के निरतिचार पालन का वर्णन पढ़ते हैं, या साधु-साध्वियों के लिए विधि-निषेधरूप में शास्त्रों में बताए हुए कठोर नियमोपनियमों को पढ़ते-सुनते हैं तो उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उक्त कठोर क्रियाकाण्ड या व्यवहार-चारित्र के मार्ग को ही वे परमात्मा का मार्ग समझते हैं। केवल क्रियाकाण्ड को ही ऐसे साधक परमात्म-पथ मानकर स्वयं को परमात्म-मार्ग पर चलने वाले पथिक मानते हैं। इस कारण प्रभु के द्वारा (निश्चय चारित्र) अन्तरंग-रूप से आचरित स्वरूपरमणरूप चारित्र तथा स्वरूप के ज्ञान-दर्शन उनकी समझ में नहीं आते । इसलिए आगम से भी प्रभुपय का निर्णय कठिन प्रतीत होता है।
फिर सच्चे माने में आगम या शास्त्र भी वही माना जाता है जो व्युत्पत्ति की कसौटो में खरा उतरता हो । आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने शास्त्र का निर्वचन किया है1--
जिसके द्वारा ज्ञेय या आत्मा के यथार्थ स्वरूप का परिबोध हो, तथा जिससे आत्मा अनुशासित एवं शिक्षित किया जा सके। आचार्य समन्तभद्र शास्त्र को यह कसोटो बताते हैं जो वोत राग आप्तपुरुषों द्वारा जानापरखा गया हो, जो किसी अन्य वचनों द्वारा उल्लंधित-हीन न किया जा सके, जो प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाणों से खण्डित न हो सके, जो प्राणिमात्र के कल्याण के निमित सार्वजनिक हितोपदे शरूप हो, एवं अध्यात्म-साधना के विरोधी कुमार्गों का निराकरण करने में सक्षम हो। इस कसौटी पर खरे उतरने वाले शास्त्र भा अत्यल होंगे। बहुविध शास्त्रों को इस कसौटो पर कसकर छाँटना भी सामान्य साधक के लिए कठिन है । फिर सत्-शास्त्रों के अवलोकन मात्र से हो प्रभु का मार्ग नहीं मिल जाता, वह तभी मिल सकता है, जब शास्त्रों में बताए हुए व्यवहार और निश्चय मोक्षमार्ग या परमात्ममार्ग पर चलकर उसका अनुभव किया जाए। कोई यात्री मार्ग को पूछकर ही बैठ जाए उसे उस मार्ग का अनुभव नहीं होता, मार्ग पर चलने से ही अनुभव हो पाता है। इसी प्रकार परमात्मभाव (मोक्ष) को मंजिल तक पहुँचने का इच्छुक यात्री अगर परमात्ममार्ग को शास्त्र से जानकर या शास्त्रज्ञ से पूछकर ही बैठ जाए तो उसे मार्ग का
१ सासिज्जए तेण तहिं वा नेयमायावतो सत्थं । शासु-अनुशिष्टौ,शास्यते ज्ञयमा।
त्मावाऽनेनास्यादस्मिन्निति वा शास्त्रम् । -विशेषावश्यकभाष्य टीका २ आप्तोपज्ञमनुलंध्यमदृष्टेष्टविरोधकम् ।
तत्वोपदेशकृत् सार्वं शास्त्रं कापथ घट्टनम् । -रत्नकरण्डक श्रावकाचार
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