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२१० | अप्पा सो परमप्पा
श्रमण संस्कृति में आत्मा की चरम शुद्ध दशा को ही ईश्वर-मुक्त सिद्ध परमात्मा माना गया है और वे अनन्त हो सकते हैं। कोई एक ही अनादिसिद्ध सृष्टिकर्ता ईश्वर को श्रमणसंस्कृति नहीं मानती। यहाँ जन से जिन बनने का, स्वपुरुषार्थ से परमात्मपद प्राप्त करने का, अपने सुखदुःखों का अपनी सृष्टि का या अपने स्वभाव का स्वयं कर्ता-भोक्ता बनने का सिद्धान्त ही स्वीकृत किया गया है। श्रमणसंस्कृति के प्राचीन धर्मग्रन्थों एवं शास्त्रों में अपने पुरुषार्थ से चार घाती कर्मों का क्षय करके जन से जिन, केवली, अरिहन्त या तीर्थंकर बनने के तथा सर्वकर्मों का क्षय करके सिद्धबुद्ध मुक्त परमात्मा बनने के अनेकों उदाहरण मिलते हैं । ये सभी सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तो बनते ही हैं। जो सिद्धपरमात्मा होते हैं, वे अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख (आनन्द) और अनन्त आत्मिक शक्ति (वीर्य) से सम्पन्न हो जाते हैं । जो सर्वथा मुक्त परमात्मा हो चुके हैं, वे जन्म-मरणादिरूप या कर्म-कर्म फलयुक्त संसार में पुनः लौटकर नहीं आते।
जीवन्मुक्त सदेह परमात्मा के तथा सर्वकर्ममुक्त सिद्ध परमात्मा के जीवन्मुक्त या विदेहमुक्त परमात्मा बनने से पूर्व एक या अनेक जन्मों की जीवन-यात्रा में उत्थान पतनसम्बन्धी एवं धर्म-साधनासम्बन्धी क्रमबद्ध रेखाचित्र शास्त्रों एवं धर्मग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं । जिससे सामान्य मानवात्मा को भी उन्हीं की तरह रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग की साधना करने की, आत्मा से परमात्मा बनने की तथा उन्हीं के पदचिह्नों पर चलने की प्रेरणा मिलती है और एक दिन वे कर्ममलिन आत्माएँ भी शुद्ध आत्मा परमात्मा बन जाती हैं। श्रमणसंस्कृति का उत्तारवाद उन परमात्म-संज्ञक महापुरुषों की कोरी स्तुति या स्तोत्र पाठ करने या गुणगान करने के लिए अथवा उनकी प्रशंसा करके पापों के फल से मुक्त हो जाने या पापमाफी कराने के लिए नहीं है या उनका चरित्र केवल सुनने भर के लिए नहीं है, अपितु उनके जीवन से प्रेरणा लेकर उनके गुण जीवन के कण-कण में गहरे उतारने के लिए है। उत्तारवाद से मानवसमूह को पाप के फल से बचने की अथवा निःशंक पापकर्म करने की प्रेरणा नहीं मिलती, अपितु पापकर्मों से बचने की, कर्मों के बीजरूप राग-द्वेष, मोह, कषाय आदि विकारों से बचने की स्वयं साधना द्वारा शुभाशुभ सभी कर्मों को क्षय करने की एवं आत्मस्वरूप में स्थित होने की प्रेरणा मिलती है। श्रमणसंस्कृति-मान्य वीतराग परमात्मा (ईश्वर) का परमानन्द पंचविंशति में यही लक्षण दिया गया है
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