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परमात्मा कैसा है, कैसा नहीं ? | १६६
सब्ज उपजाऊ भूमि और कहीं गर्मी से झुलसता हुआ रेगिस्तान बनाना पड़ेगा। ऐसी भेदबुद्धि राग, द्वेष, पक्षपात आदि के बिना कैसे आएगी? फिर कहाँ रहेगा ईश्वर वीतराग ? कहाँ और कब करेगा वह स्वभावरमण?
क्या ईश्वर परतन्त्र एवं अल्पशक्तिमान है ? आप इस प्रकार के सृष्टिकर्ता ईश्वर के लिए यह भी नहीं कह सकते कि कोई उससे जबरन सष्टि रचने का कार्य करवाता है। अगर कहें कि यह सृष्टि रचना अपनी इच्छा से नहीं, दूसरे की इच्छा से जबरदस्ती से करने में संलग्न होता है, तब तो वह स्वतन्त्र एवं सर्वशक्तिमान् कहाँ रहा ? वह परतन्त्र एवं निर्बल ही ठहरा ।
परभावनिष्ठ ईश्वर की आत्मिक-ऐश्वर्यसम्पन्नता कहाँ रही ? ईश्वर को सष्टिकर्ता मानने वाले लोग उसे विश्व की सर्वोच्च, एक अद्वितीय ऐश्वर्यसम्पन्न शक्ति मानते हैं । ईश्वर वही है जो अद्वितीय ऐश्वर्यसम्पन्न हो। वह ऐश्वर्य भौतिक धन-सम्पत्ति, लौकिक सत्ता, प्रभुता, सांसारिक पद-प्रतिष्ठा, विषय सुख-सामग्री-सम्पन्नता नहीं, अपितु आत्मा की अपार अनन्त सत्-चित्-आनन्द से परिपूर्ण दशा को ही परम ऐश्वर्य कहते हैं । उसी परम आत्मिक ऐश्वर्य से सम्पन्न शुद्ध-बुद्धमुक्त आत्मा को ही परमात्मा या ईश्वर कहा जाता है । जो ऐसी परम ऐश्वर्य सम्पन्नता और शुद्ध स्वभाव दशा को प्राप्त हो गया, वह परभाव में एक क्षण के लिए भी नहीं जा सकता। वह सतत् अनन्तज्ञान-दर्शन, असीम आत्मिक परमानन्द निमग्न आत्मा (परमात्मा) क्यों संसार में आने और संसार को बनाने-बिगाड़ने की उलझन में तथा राग-द्वेष भरी परभाव-रमणता की खटपट में पड़ेगा? फिर जो ज्ञान और आनन्द की पूर्णता के शिखर पर पहुँच गया है, वह पुनः अपूर्णता के गड्ढे में गिरे, कृतकृत्य होकर पुनः संसार की रचना करने की इच्छा करे, उसको बनाने-बिगाड़ने
१ कहा भी है
कर्ता ईश्वर कोई नहीं, ईश्वर शुद्ध स्वभाव । अथवा प्रेरक ते गण्ये, ईश्वर दोष-प्रभाव ॥
-आत्मसिद्धि ० ७७
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