________________
परमात्मा कैसा है, कैसा नहीं ? | १९७
बिना बनाए भी कोई वस्तू अस्तित्व रख सकती है। इस पर जैनदर्शन का कहना है कि यदि कोई पदार्थ बिना बनाए अपना अस्तित्व नहीं रख सकता तो फिर प्रश्न होगा कि ईश्वर को किसने बनाया ? यदि ईश्वर को बनाने वाला कोई दूसरा ईश्वर हो तो फिर दूसरे ईश्वर को किस ईश्वर ने बनाया ? यह प्रश्न आगे से आगे चलता रहेगा, इसका अन्त ही नहीं आएगा । यदि कहें कि ईश्वर तो स्वयंभू है, अपने आप उत्पन्न हुआ है, वह अनादि-अनन्तकाल से अपना अस्तित्व टिकाये हुए है। तब फिर सृष्टि भी अपने आप बनती है, ऐसा मानने में क्या आपत्ति है ? वह भी ईश्वर के समान प्रवाह रूप से अनादि-अनन्त है। उसके अस्तित्व के लिए भी किसी उत्पादक की अपेक्षा नहीं रहती। वह भी इश्वर की तरह किसी के द्वारा बनाए बिना स्वतः सिद्ध है।
समग्रदृष्टि से विचार करने पर ईश्वर द्वारा सृष्टि कर्तृत्व किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं होता।
वीतराग ईश्वर दुःखमय एवं विषम सृष्टि क्यों बनाएगा ? निराकार ईश्वर हाथ, पैर, शरोरादि के बिना सृष्टि को कैसे बना सकता है ? इसका उत्तर वैदिक धर्म की शाखा वाले सनातनी और आर्यसमाजी यह देते हैं कि "निराकार ईश्वर ने इच्छामात्र से इस सृष्टि का निर्माण कर दिया। उसकी ज्योंही इच्छा हुई कि सृष्टि तैयार हो, त्योंही सूर्य चन्द्र, ग्रह-नक्षत्र, पृथ्वी और आकाश, नदी और समुद्र आदि सब बन कर तैयार हो गए।"
जैनदर्शन यह तर्क करता है कि ईश्वर (निरंजन, निराकार परमात्मा) तो इच्छा कर ही नहीं सकता, क्योंकि इच्छा मन से होती है। ईश्वर के द्रव्य मन तो है नहीं । फिर इच्छा किसी न किसी प्रयोजन के लिए होती है । ईश्वर तो कृतकृत्य हो गया । उसे क्या करना बाकी रह गया ? जगत् को बनाने-बिगाड़ने में ईश्वर का क्या मतलब है, क्या स्वार्थ है उसका ? यदि कहो कि स्वार्थ नहीं, परमार्थ है, तो यह कैसा परमार्थ
१ यो मामजमनादि च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढ़ः स मर्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।
- गीता १०/३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org