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परमात्मा बनने की योग्यता किसमें ?
आत्मा बीज : परमात्मा विस्तार चैतन्य के दो सिरे हैं । एक सिरा है आत्मा और दूसरा सिरा है - परमात्मा । इनमें से आत्मा बीज है, और परमात्मा उसका विस्तार | वट का बीज बहुत ही नन्हा सा होता है, किन्तु फैलते फैलते एक दिन विशाल वट वृक्ष का रूप ग्रहण कर लेता है । हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि यह उस वट के बीज का ही विकसित रूप है । इसी प्रकार आत्मा भी बीजरूप में अपने में परमात्मत्व को छिपाए रहता है । वह भी विकास करते-करते एक दिन चेतना का पूर्ण विकास पा लेता है । इसी को जैनदर्शन परमात्मा कहता है ।
आत्मा का लक्ष्य और उसकी यात्रा का प्रारम्भ आत्मा का मूलभूत लक्ष्य परमात्मा होना है । उसका यह लक्ष्य स्वाभाविक है, काल्पनिक नहीं । किन्तु इस लक्ष्य को प्राप्त करने में बहुत ही अड़चनें हैं, विघ्न-बाधाएँ हैं । कई घाटियाँ पार करनी होती हैं, तब जाकर परमात्म-पदप्राप्ति के लक्ष्य की ओर उसके मुस्तैदी कदम गिरते हैं । कहा जा सकता है कि परमात्मा होने के लिए आत्मा को बहुत लम्बी यात्रा करनी पड़ती है । परमात्म-पद-प्राप्ति के लक्ष्य की ओर जब आत्मा का मुख होता है, तब सर्वप्रथम चरण में उसे अपने अस्तित्व का बोध - परिज्ञान होता है । जैसा कि श्रमण भगवान् महावीर ने आचारांग सूत्र में
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