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________________ १३२ | अप्पा सो परमप्पा सकोगे । यह आत्मा का दायित्व है कि वह पूर्ण परमात्मा बनता है, बनने का प्रयत्न करता है या बद्ध-परमात्मा ही रहना चाहता है। भगवान् महावीर कहते हैं, अगर तुम पूर्ण सिद्ध-परमात्मा बनना चाहते हो तो अपने हाथ में बागडोर संभालो । अपने सुख-दुःख का दायित्व दूसरों पर मत डालो। किसी शक्ति या पूर्ण परमात्मा के आगे गिड़गिड़ाने से, परमात्मपद की भीख माँगने से, या आत्मिक सुखों के पाने के लिए खुशामद करने से या अपने दोषों--अपराधों को माफ करने की प्रार्थना करने से किसी की आत्मा पूर्ण परमात्मा नहीं बन पाएगी। अपनी आत्मा को स्वयं जगाने और स्वयं पुरुषार्थ करने से व अपने पर जिम्मेवारी लेने से ही पूर्ण परमात्मपद प्राप्त हो सकेगा। पूर्ण परमात्मा (सिद्ध) बनना या बद्ध परमात्मा ही रहना तुम्हारे ही हाथ में है । सिद्ध परमात्मा तुम्हारे या जगत के स्रष्टा नहीं, तुम्ही स्वयं अपने स्रष्टा हो। अतः कर्मों की निर्जरा करके, जन्म-मरण के चक्र को समाप्त करने का दायित्व तुम्हारा है। समस्त दुःखों से मुक्त होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा बनना भी तुम्हारे हाथ में है। इसीलिए एक महान् आचार्य ने आत्मा पर ही परमात्मा बनने का सारा दायित्व डालते हुए कहा यः परमात्मा स एवाऽहं, योऽहं सः परमस्तथा । __अहमेव मयाऽऽराध्यः, नान्यः कश्चिदिति स्थितिः ॥ जो परमात्मा है, वही मैं हूँ तथा जो मैं हूँ, वही (मेरा) परमात्मा है। ऐसी स्थिति में मैं (आत्मा) ही मेरा (आत्मा का) आराध्य है, अन्य कोई नहीं। इस श्लोक में भगवान महावीर का आत्मा से परमात्मा बनने का सिद्धान्त, तथा आत्मा पर अपने अन्तर में स्थित शुद्ध आत्मा=परमात्मा बनने का दायित्व स्पष्ट कर दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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