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________________ १३० | अप्पा सो परमप्पा बस, यही मतभेद है, वैदिक धर्म के परमात्मा और जैनधर्ममान्य परमात्मा के लक्षण में ! वैदिक धर्म कहता है-परमात्मा ने सृष्टि बनाई। जगत् के सब जड़-चेतन पदार्थ परमात्मा ने बनाए । परन्तु बनाने की बात ही युक्ति, अनुभूति और सिद्धान्त से विरुद्ध है। परमात्मा ने सृष्टि क्यों बनाई ? सृष्टि बनाई ही तो पक्षपात क्यों किया ? एक को सुखी, एक को दःखी क्यों बना दिया ? परमात्मा तो निरंजन, निराकार है, उसने सष्टि की रचना बिना शरीर एवं अंगोपांग के कैसे की ? परमात्मा ने सृष्टि बनाई तो परमात्मा को किसने बनाया ? इत्यादि अनेक प्रश्न उपस्थित होते हैं । यह चर्चा काफी लम्बी-चौड़ी है। जैनधर्म इसका रहस्य खोलता है कि सभी आत्माएँ परमात्मा हैं। प्रत्येक आत्मा परमात्मा है। प्रत्येक आत्मा अपना स्रष्टा है, वही अपने जगत् का स्रष्टा है। जैनधर्म के एक महान् आचार्य ने समन्वयात्मक दृष्टि से इसका रहस्य खोला है परमैश्वर्ययुक्तत्वात् आत्मैव मत ईश्वरः । स च कर्ते ति निर्दोष, कर्तृवादो व्यवस्थितः ॥1 आत्मा ही परम ऐश्वर्य से युक्त होने के कारण ईश्वर (परमात्मा) है और वही कर्ता है । इस प्रकार निर्दोष कर्तृत्ववाद सिद्ध हो गया। इसका आशय यह है कि आत्मा अपना, अपने सूख-दुःख का, अपने हिताहित का कर्ता-स्रष्टा स्वयं है, इस कारण जो जिस प्रकार का आत्मा है, वह वैसा ही अपनी सृष्टि का स्वयं कर्ता होता है । इस युक्ति से ईश्वरकर्तृत्ववाद भी सिद्ध हो गया । और निरंजन निराकार ईश्वर (परमात्मा) पर जो सृष्टिकर्तृत्ववाद का दोष था, वह भी दूर हो गया। निरंजन निराकार परमात्मा अपने आत्मभावों के कर्ता हैं, वे अपने ज्ञान, दर्शन, आनन्द और आत्मशक्ति के स्रष्टा हैं । तीन कोटि के परमात्मा जैनदर्शन कहता है कि एक सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा हैं, दूसरे हैंजीवन्मुक्त परमात्मा और तीसरे हैं-बद्ध परमात्मा। ये तीन कोटि के परमात्मा हैं। जो निरंजन-निराकार परमात्मा है, वह पूर्ण हो चुका। वह अपनी आत्मा के परिपूर्ण विकास का, आत्मा के परिपूर्ण ज्ञान, दर्शन, सुख और १ शास्त्रवासिमुच्चय, स्तबक ३ श्लो० १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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