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१२८ | अप्पा सो परमप्पा
कि भया पाणा दुक्खभया पाणा ।
दुक्खे केण कडे ? जीवेण कडे पमाए। भगवन् ! प्राणी किससे डरते हैं ? उन्होंने कहा- "प्राणी दुःख से डरते हैं ।" फिर पूछा--'दुःख किसने उत्पन्न किया है ?' उत्तर दिया"स्वयं जीव (आत्मा) ने अपनी ही भूल से दुःख उत्पन्न किया है।"
____ अर्थात् सभी दुःख आत्मकृत हैं । दुःख के लिए प्रत्येक प्राणी स्वयं ही जिम्मेदार है। पाश्चात्य जगत् में उत्तरदायित्व को टालने की बात
वस्तु तत्व को नहीं जानने वाला व्यक्ति इस तथ्य-सत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं होता । अपने सुख या दुःख के लिए वह किसी और को जिम्मेदार ठहराना चाहता है । साम्यवाद-प्रणेता 'मार्स' कहता हैअर्थव्यवस्था ही मानव के सूख-दुःख, हित-अहित, भले-बुरे के लिए जिम्मेदार है । 'फ्रायड' गलत संस्कारों को इसके लिए जिम्मेदार बताता है । 'हीगल' कहता है- दुनिया में जो कुछ दुःख-दर्द हो रहा है, उसके लिए इतिहास जिम्मेवार है । ईसाई धर्म की बाइबिल में अंकित 'आदम' और ईव की कहानी भी पश्चिम के जन-मन में फैली हुई है-दूसरों को उत्तरदायी ठहराने में । 'आदम' कहता है-'ईव' ने मुझे बहकाया । 'ईव' कहती है-'शैतान ने साँप के आकार में आकर मुझे फुसलाया।' परन्तु शैतान, जो साँप की आकृति में आया था, मौन है, इस विषय में । नहीं तो वह भी कहता कि मुझे अमुक ने फुसलाया । पश्चिम के मनोविज्ञान शास्त्र, इतिहास
और कथा साहित्य को उठा कर देखिये, सर्वत्र अपने उत्तरदायित्व को टालने की बात मिलेगी। श्रमण भगवान् महावीर, गौतम बुद्ध आदि ने दृढ़तापूर्वक कहा-अपने सुख-दुःख, हित-अहित, कल्याण-अकल्याण, यहाँ तक कि सिद्ध-मुक्त या बद्ध आत्मा के लिए तुम स्वयं ही जिम्मेवार हो।
भगवद्गीता में कर्मयोगी श्री कृष्ण ने भी इसी तथ्य का समर्थन किया है
'उद्धरेदात्मनाऽत्मानमात्मानमवसादयेत् । आत्मैव ह्यात्मनो बाधुरात्मैव रिपुरात्मनः ।।
१ स्थानांग सूत्र ३/२ २ भगवदगीता अ. ६ श्लो. ५
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