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________________ ११० | अप्पा सो परमप्पा ओर ले जाने का स्थूल प्रयास है । फिर भी आत्मानुभवी व्यक्ति, संगीत या लेख द्वारा अपने अनुभव के कुछ संकेत करते हैं । आत्मानुभूति में तारतम्य आत्मानुभवों भी गहराई और स्थायित्व का तारतम्य देखा जाता है। किसी का अनुभव गहरा और अधिक टिकाऊ होता है, तो किसी का क्षणजीवी होता है। किसी को प्रारम्भिक अनुभव थोड़े पलों का होता है। बिजली की चमक की तरह एक क्षण में शुद्ध आत्मा परमात्मा के दर्शन हो जाते हैं । किन्तु ये थोड़े-से क्षण भी व्यक्ति के जीवन में - मानसिक चिन्तन में, जबर्दस्त क्रान्ति ला देते हैं । किसी व्यक्ति के बाह्य जीवन में आत्मानुभव प्राप्त होने के बाद जबर्दस्त परिवर्तन आता है, जबकि किसी के बाह्य जीवन में थोड़ा-सा परिवर्तन होता है। आत्मानुभव के पश्चात् व्यक्ति के बाह्य जीवन में कदाचित् परिवर्तन न हो, परन्तु उसका आन्तरिक जीवन, मानसिक रुख, रुचि और दृष्टि तो अवश्य बदल जाती है । जीवन और जगत् के प्रति उसका दृष्टिकोण समूल बदल जाता है । इतना ही नहीं, क्षणिक अनुभव भी व्यक्ति के मानस पर अपनी अचूक छाप छोड़ जाता है । ऐसा आत्मानुभव ध्यान के दौरान ही हो, ऐसा एकान्त नहीं है । किसी को किसी भव्य दृश्य, हृदयस्पर्शी कविता, उच्चभावों से परिपूर्ण संगीत, अनुभवी महान आत्माओं के प्रवचन, ग्रन्थ या लेख, ज्ञानी पुरुष के किसी वाक्य को पढ़ते-पढ़ते, उस पर मनन- चिन्तन एवं ऊहापोह करते. करते सहसा देह का भान चला जाता है और आत्मा के उज्ज्वल प्रकाश का अनुभव होता है । ऐसा भी सम्भव है कि कोई व्यक्ति किसी संकट, आफत या मुसीबत में फँस गया हो, उस समय निराशा, उदासीनता, विषाद और चिन्ता ने उसे घेर लिया हो, उसी बीच सहसा ऐसी अनुभव की ज्योति उसके अन्तर में जगमगा उठे तथा निराशा, उदासीनता, विषाद और चिन्ता आदि सब मिट जाएँ और वह अपनी परिस्थिति का निर्लेप साक्षी या ज्ञाता द्रष्टा बनकर रहे। किसी को जन्मान्तर के संस्कार जागृत होने से वर्तमान जीवन में किसी भी प्रयत्न, बाह्यनिमित्त या पूर्व तैयारी के बिना अनायास ही आत्मतत्व के दर्शन हो जाते हैं । कभी-कभी तो ऐसे व्यक्ति को भी अकस्मात् आत्मानुभव प्राप्त हो जाता है, जिसका बाह्यजीवन पाप और अनाचार के मार्ग पर चढ़ा हुआ था । उसके जीवन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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