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________________ आत्मानुभव : परमात्म-प्राप्ति का द्वार आत्मानुभव का जादू आत्मा को जानने-देखने के पश्चात् आगे का क्रम है-शुद्ध आत्मा का अनुभव । आत्मा की अनुभूति परमात्म-प्राप्ति अथवा अपनी आत्मा में परमात्म-तत्व को प्राप्त करने का अमोघ उपाय है। अध्यात्मयोगी श्री चिदानन्द जी महाराज ने अत्मानुभूति का माहात्म्य बताते हुए कहा निज अनुभव लवलेश थी, कठिन कर्म होय नाश । अल्प भवे भवि ते लहे, अविचलपुर को वास ॥ भावार्थ यह है कि आत्मा के स्वल्प अनुभव से भी कठिन कर्मों का क्षय हो जाता है और वह आत्मार्थी साधक कुछ ही भवों में समस्त कर्मों से मुक्ति पा जाता है । अर्थात्-आत्मा से परमात्मा बन जाता है। प्रश्न होता है-आत्मानुभव में ऐसा क्या जादू है कि उसे पाने वाला व्यक्ति अल्प भवों में मुक्ति प्राप्त कर लेता है, भवभ्रमण का अन्त कर डालता है ? इसका रहस्य यही है कि आत्मा की जब किसी को अनुभूति हो जाती है तो वह क्षणभर में उसका प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त कर लेता है। निज की यह अनुभूति व्यक्ति की जीवनदृष्टि में जबर्दस्त क्रान्ति का सृजन करती है। श्रुत-शास्त्रादि ( ६७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003189
Book TitleAppa so Parmappa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size18 MB
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