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________________ आस्तिक्य का चतुर्थ आधार : क्रियावाद | २७६ के परम समर्थक एवं प्रेरक भगवान् महावीर ने क्रियावाद के सन्दर्भ में अस्तिवाद का शंखनाद किया "अस्थि लोए, अस्थि अलोए, अत्थि जीवा, अस्थि अजीवा, अत्थि बंधे, अत्थि मोक्खे, अत्थि पुणे, अस्थि पावे, अस्थि आसवे, अस्थि संवरे, अस्थि वेयणा, अस्थि निज्जरा, अरिहंता वि संति, चक्कवडी वि अस्थि, बलदेव-वासुदेवा वि संति, जरगा वि संति, देवलोआ वि संति, तिरिक्खजोणिया वि संति, रिसओ वि संति, सिद्धा वि संति, सिद्धि वि अत्थि, अस्थि परिणिवाणे, परिणिध्वुआ वि संति ।"] अर्थात्-... "लोक है, अलोक है, जीव है, अजीव है, बन्ध है, मोक्ष है, पुण्य है, पाप है, आस्रव है, संवर है, वेदना (सुख-दुःखवेदन) है, निर्जरा है, अरिहन्त भी हैं, चक्रवर्ती भी हैं, बलदेव और वासूदेव भी हैं, नरक भी हैं, देवलोक स्वर्ग भी हैं, तिर्यञ्च भी हैं, ऋषि भी हैं, सिद्ध (मुक्त आत्मा) भी हैं, सिद्धि (मुक्ति) भी है, परिनिर्वाण (मोक्ष) है; और परिनिवृत (मोक्षप्राप्त = मुक्त भी हैं।" इन सबको और आत्मा से सम्बन्धित ऐसे ही अन्य तत्त्वों- पदार्थों को जानने-मानने वाला आस्तिक है। और वही क्रियावादी या सम्यग्वादी है। इसके विपरीत जो इन तत्त्वों को नहीं मानता-जानता वह नास्तिक है, अक्रियावादी है। क्रियावादी और अत्रियावादी किसी भी बात को भलीभाँति सोचने, समझने और तत्त्व का अन्वेषण करने का काम प्रज्ञा का है। प्रज्ञा कहते हैं सद्-असद-विवेकशालिनी बुद्धि को। कुछ लोगों में बौद्धिक क्षमता तो अधिक होती है, वे तर्क-कुतर्क करने में सक्षम होते हैं, परन्तु केवल बौद्धिक उड़ान भरने वाले व्यक्तियों की श्रद्धा किसी एक निश्चित सिद्धान्त पर नहीं टिकती। उनका हृदय संशयग्रस्त रहता है। इसलिए वे क्रियावादी नहीं कहलाते । जो क्रियावादी होते हैं, वे उपरोक्त अतीन्द्रिय वस्तुओं को श्रद्धा से मान लेते हैं तथा प्रत्यक्ष इन्द्रियगोचर वस्तुओं के विषय में तर्क भी करते हैं, युक्ति से समझना भी चाहते हैं, परन्तु वस्तु हृदयंगम हो जाने के पश्चात् वे उस पर श्रद्धा और निष्ठा रखकर चलते हैं, उनकी श्रद्धा भी सक्रिय हो जाती है । यही कारण है कि जो क्रिया १. उपवाई सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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