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२६८ | सद्धा परम दुल्लहा
एवं फला-फूला देखते हैं, तो वे कर्मफल के इस प्रकार के व्युत्क्रम को देख कर भी अनास्था प्रकट करने लगते हैं। भगवान महावीर का जीवन परम धार्मिक एवं वीतरागता से ओतप्रोत था, फिर भी उन्होंने अपने जीवन में अनेक कष्ट पाए । सुकरात आजीवन नैतिक आदर्शों के पुजारी और चरित्रवान् रहे, परन्तु उन्हें जबरन विष का प्याला पीकर मरना पड़ा। पवित्र जीवनजीवी प्रेमपरायण ईसामसीह को क्रूस पर लटकाया गया। स्वामी दयानन्द, श्रद्धानन्द एवं महात्मा गाँधी को अकाल में दुष्ट व्यक्तियों ने मृत्यु का शिकार बना दिया।
इसका समाधान सभी भारतीय दर्शन यह करते हैं कि इन सब के पीछे पूर्वजन्मकृत अशुभकर्म ही कारण हैं । आत्मा की जीवनयात्रा अनेक गतियों और योनियों के अच्छे-बुरे कर्म, संस्कार आदि को साथ लिए हुए चलती है। इस जन्म में सदाचारपरायण या धर्मिष्ठ रहने पर भी किसी व्यक्ति पर संकट आता है या इस जन्म में पापपरायण, अधार्मिक रहने पर भी यदि कोई व्यक्ति धन, बल या बुद्धि से सम्पन्न दिखाई देता है तो क्रमशः उसके किसी पूर्वजन्म में किये हुए दुष्कर्म या सत्कर्म का फल समझना चाहिए। कई लोग वर्तमान में किसी भी अपराध या पाप से लिप्त न होते हए भी जन्म से दरिद्री, विपन्न, अंधे, लूले-लंगड़े देखे जाते हैं इसके विपरीत कई लोगों को अभिभावकों या परिस्थितियों का सहयोग न मिलने पर भी कलाकूशल, बुद्धिमान, मेधावी, प्रतिभासम्पन्न, सुख-सुविधासम्पन्न देखे जाते हैं । इन सबके कारण पूर्वजन्मकृत शुभाशुभ कर्म ही हैं ।
दूसरी बात महापुरुष अपने पर आये हुए कष्टों, उपसर्गों, परीषहों, विघ्न-बाधाओं आदि को आत्म-साधना तथा आध्यात्मिक गुणों में वृद्धि एवं आध्यात्मिक शक्तियों के विकास के लिए वरदान मानते हैं। वे अपने आदर्शों और सिद्धान्तों से भ्रष्ट होकर प्राणों के मोही बनकर जीना नहीं चाहते । वे आदर्शों के लिए आत्म-बलिदान करना आत्म-गौरवरूप समझते हैं । अतः कर्मवादी यह मानता है कि पूर्वजन्मकृत या पूर्वकृत शुभाशुभ कर्म समयानुसार परिपक्व होने पर अपना शुभाशुभ फल अवश्य देते हैं।
___ कर्म और आत्मा दोनों में बलवान कौन ? यह देखा जाता है कि कर्मों का वशवर्ती आत्मा देव-नरकादि नाना गतियों में परिभ्रमण करता है, अनेक प्रकार के सुख-दुःख भोगता है, ऐसी स्थिति में प्रश्न होता है कि कर्म और आत्मा इन दोनों में बलिष्ठ कौन है ?
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