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परिशिष्ट १
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२६. श्राभरणविहि— अलंकार निर्माण की तथा धारण की कला । २७. तरुणीपडिकम्मं - स्त्री को शिक्षा देने की कला । २८. इत्थीलक्रणं - स्त्री के लक्षण जानने की कला । २६. पुरिसलक्खणं - पुरुष के लक्षण जानने की कला । ३०. हयलक्खणं - घोड़े के लक्षण जानने की कला । ३१. गयलक्खरणं - हस्ती के लक्षण जानने की कला । ३२. गोलक्खणं - गाय के लक्षण जानने की कला । ३३. कुक्कुडलक्खणं- कुक्कुट के लक्षण जानने की कला । ३४. मिढयलक्खणं-- मेंढ़े के लक्षण जानने की कला । ३५. चक्कलक्खणं- --चक्र-लक्षण जानने की कला । ३६. छत्तलक्खणं - छत्र लक्षण जानने की कला । ३७. दण्डलक्खणं - दण्ड लक्षण जानने की कला ।
३८. असिलक्खणं - तलवार के लक्षण जानने की कला । ३६. मरिणलक्खगं - मणि- लक्षण जानने की कला ।
४०.
कागरिगलक्खरणं -- काकिणी - चक्रवर्ती के रत्नविशेष के लक्षण को जानने की कला ।
४९. चम्मलक्खणं - चर्म-लक्षण जानने की कला । ४२. चंदलक्खणं - चन्द्र लक्षण जानने की कला । ४३. सूरचरियं - सूर्यं आदि की गति जानने की कला ।
४४. राहुवरिगं - राहु आदि की गति जानने की कला । ४५. गहचरियं - ग्रहों की गति जानने की कला ।
४६. सोभागकरं -- सौभाग्य का ज्ञान ।
४७. दोभागकरं - दुर्भाग्य का ज्ञान ।
४८. विज्जागयं-रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि विद्या सम्बन्धी ज्ञान । ४६. मंतगयं मन्त्र साधना आदि का ज्ञान ।
५०. रहस्सगयं - गुप्त वस्तु को जानने का ज्ञान ।
५१. सभासं - प्रत्येक वस्तु के वृत्त का ज्ञान ।
५२. चारं - सैन्य का प्रमाण आदि जानना ।
५३. पडिचारं - - सेना को रणक्षेत्र में उतारने की कला ।
५४. वहं - व्यूह रचने की कला ।
५५. पडिव हं - प्रतिव्यूह रचने की कला (व्यूह के सामने उसे पराजित
करने वाले व्यूह की रचना )
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