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________________ १४० ऋषभदेव : एक परिशीलन विराट् सेना के छक्के छुड़ा दिये । लम्बे समय तक युद्ध चलता रहा, पर न भरत ही जीते और न बाहुबली ही। अन्त में बाहुबली के कहने पर निर्णय किया कि व्यर्थ ही मानवों का रक्त-पात करना अनुचित है, क्यों न हम दोनों मिलकर युद्ध करलें ।२५८ दिगम्बराचार्य जिनसेन ने दोनों भाइयों के जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध और बाहुयुद्ध इन तीन युद्धों का निरूपण किया है ।२५९ प्राचार्य जिनदास गणिमहत्तर ने दृष्टि युद्ध, वाग् युद्ध, बाहु युद्ध और मुष्टि युद्ध का प्ररूपण किया है ।२६० ___ उपाध्याय श्री विनय विजय जी ने दृष्टि युद्ध, वाग् युद्ध, मुष्टियुद्ध, दण्ड युद्ध इन चार युद्धों का निर्देश किया है ।२६१ आवश्यक भाष्यकार, २६२ तथा प्राचार्य हेमचन्द्र २६३ व २५८. ताहे ते सव्वबलेण दोवि देसंते मिलिया, ताहे बाहुबलिणा भणितं कि अणवराहिणा लोगेण मारिएण ? तुमं अहं च दुयगा जुज्झामो, एवं होउत्ति । -आवश्यक चूणि पृ० २१० २५६. जलदृष्टिनियुद्धषु, योऽनयोर्जयमाप्स्यति । स जयश्रीविलासिन्याः पतिरस्तु स्वयंवृतः ॥ -महापुराण ३३।४।२०४। द्वि० भा० २६०. तेसि पढमं दिट्ठिजुद्धं जातं, तत्थ भरहो पराजितो । पच्छा वायाए, तहिपि भरहो पराजितो, एवं बाहुजुद्ध ऽवि पराजितो, ताहे मुट्ठिजुद्ध जातं तत्थवि पराजितो। -आवश्यक चूणि पृ० २१० २६१. कल्पसूत्र, सुबोधिका टीका पृ० ५१३ सारा० न० २६२. पदमं दिट्ठीजुद्ध वायाजुद्ध तहेव बाहाहि । मुट्ठीहि अ दंडेहि अ सव्वत्थवि जिप्पए भरहो । -आवश्यक भाष्य गा० ३२ २६३. त्रिषष्टि० पर्व १, सर्ग ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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