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________________ दुर्गुणों की उपेक्षा १७ जाएगी। मैं जिस प्रकार संकेत करूँ उसी संकेत के अनुसार तुझे कार्य करना है। यदि मेरे संकेत की अवहेलना की तो तेरे लिए ठीक न होगा। यदि मैं दाहिनी आँख से संकेत करूं तो तुझे कार्य करना है और बायीं आँख से संकेत करूं तो तुझे कार्य नहीं करना है। श्रेष्ठी बाला युवक के संकेत के अनुसार कार्य करने लगी। उसके स्वभाव में नम्रता, सरलता और कार्य करने की कुशलता सभी आ गई। एक आदर्श गृहिणी के रूप में चारों ओर उसकी विश्रुति हो गई। पिता की ओर से अनेक बार सन्देश आए कि पुत्री तुझसे मिलने के लिए माँ छटपटा रही है। पर बिना पति की अनुमति के वह जा नहीं सकती थी। छह महीने के पश्चात् युवक अपनी पत्नी के साथ ससुराल पहुँचा। अपनी पुत्री के अद्भुत परिवर्तन को देखकर श्रेष्ठी विस्मित था। उसके मन में अपूर्व आह्लाद था कि मेरी पुत्री का जीवन ही एकदम बदल गया है। एक दिन श्रेष्ठी ने अपने दामाद को अपनी अन्तर्व्यथा बताते हुए कहा—जिस प्रकार तुमने मेरी पुत्री के जीवन को परिवर्तित कर दिया वैसे ही अपनी सासू के जीवन को भी यदि परिवर्तित कर सको तो मेरा शेष जीवन आनन्दमय व्यतीत हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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