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विचित्र युक्ति
एक जाट बारह वर्ष तक दिल्ली में रहा । अब वह अपने गाँव जाने की सोच रहा था । उसके मन में यह विचार आया कि बारह वर्ष तक दिल्ली में रहने के बावजूद भी बादशाह के दर्शन नहीं हुए। मेरे गाँव वाले मुझसे पूछेंगे तो मैं उन्हें क्या उत्तर दूँगा । उसने अपने विचार एक सेठ के सामने प्रस्तुत किए । सेठ ने कहा - बादशाह के दर्शन या तो नेकी से हो सकते हैं या बदी से हो सकते हैं ।
जाट ने कहा - सेठजी ! मैं आपकी रहस्यभरी बात नहीं समझ सका । जरा इसे स्पष्ट करें ।
सेठ ने कहा – बादशाह के दर्शन का एक मार्ग तो यह है - दस-बीस स्वर्णमुद्राएँ बादशाह को अर्पित करो । और दो-चार स्वर्णमुद्राएँ बादशाह के अनुचरों को खिलाओ तो बादशाह के दर्शन सम्भव हैं । यदि ऐसा नहीं कर सकते हो तो नगर के सुप्रतिष्ठित किसी व्यक्ति के दो-चार जूते लगा दो । वह रुष्ट होकर तुम्हें बादशाह के पास ले जाएगा ।
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