________________
४ पंचामृत वस्तुतः अत्यन्त कष्ट सहन किये। आज ही मुझे ध्यान आया कि तुम्हारा मेरे ऊपर कितना उपकार है। यदि मैं खून, मांस और केश दे दें तो जीवित कैसे रह सकता हूँ?
बुढ़िया ने अपने पुत्र को स्नेह से चूम लिया। वह बढ़िया को लेकर अपने भव्य भवन में पहुँचा। उसकी पत्नी उस बुढ़िया को देखकर नाक, भौं सिकोड़ने लगी। तब दिलीप ने कहा-चाहे तू कितनी भी अप्रसन्न हो जाय पर मैं अपनी माँ को नहीं छोड़ सकता। इसका मेरे ऊपर अनन्त उपकार है। घर की मालकिन तू नहीं किन्तु माँ है। माँ की बदौलत ही मैं इस पद पर पहुँचा हूँ। यदि माँ ने कठोर श्रम न किया होता तो मैं अनपढ़ रेहकर जीवन व्यतीत करता।
पति के परिवर्तन को देखकर पत्नी चुप हो गई। अब डाक्टर दिलीप प्रतिदिन जितना भी पैसा कमाता वह लाकर अपनी माँ को देता। माँ से कहता-इस सारी संपत्ति की मालकिन तुम हो । तुम मुझे और अपनी बहू को जितना हाथ-खर्च के लिए दोगी उतना ही हम लेंगे। तुम अपनी इच्छानुसार दान देकर अपने जीवन को पवित्र बना सकती हो।।
वृद्धा माँ ने कहा-वत्स ! मेरी एक ही इच्छा है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org