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स्नेह का बाण
__एक सुहावना जंगल था। उस जंगल में सैकड़ों पशु रहते थे। उसमें एक मृग दम्पति भी रहता था। दोनों में अत्यधिक स्नेह था। एक बार भयंकर दुभिक्ष पड़ा। वर्षा न होने से जंगल में पानी और घास का अभाव हो गया जिससे हजारों पशु बे-मौत मर गए।
मृग दम्पति को भी तीव्र प्यास सताने लगी। किन्तु कहीं भी पानी नहीं था। वे दोनों पानी की अन्वेषणा के लिए इधर से उधर घूमने लगे। वे एक खड्डे पर पहुँचे जहाँ पर थोड़ा-सा पानी था। उस पानी से एक की ही प्यास शान्त हो सकती थी। वे दोनों एक-दूसरे की ओर ताकने लगे। हरिणी ने प्रेमाश्र, बहाते हुए कहा-नाथ ! आप इस पानी को पी लें। मुझे दूसरे स्थान पर पानी मिल जाएगा। मैं दूसरे स्थान पर पानी पी लूंगी।
हरिण ने कहा-मैं पुरुष हूँ। मेरा शारीरिक संस्थान तेरी अपेक्षा मजबूत है। मैं और भी कुछ समय तक प्यास को सह लूँगा। तू पानी पी ले।
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