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२ पंचामृत चलने लगी। उसने लाखों रुपये कमा लिये। किन्तु बढ़िया माँ की उसने कभी सुध न ली।
एक दिन वृद्धा बीमार हो गई और ऐसी बीमार हुई कि उसके बचने की आशा ही नहीं रही। एक दिन एक पड़ोसी उसे हाथ-गाड़ी में डालकर डाक्टर दिलीप की डिस्पेन्सरी में ले गया। डाक्टर दिलीप ने उस वृद्धा माँ को देखकर के भी अनदेखा कर दिया। अन्य सभी रोगियों को तपासने के पश्चात् उसने उस वृद्धा की तपास की और कहा-इंजेक्शन, दवाएँ लेनी होंगी। उसने उसी समय पर्चा लिख दिया और अपनी फीस के पैसे माँगे।
पुत्र के इस व्यवहार को देखकर वृद्धा माँ का कलेजा काँप उठा। उसे अपने पुत्र से यह आशा नहीं थी। शरीर में शक्ति न होने पर भी वृद्धा उठकर बैठ गई। उसने कहा-मैं तेरी फीस और दवाई का पैसा देने के लिए प्रस्तुत हूँ, पर मैं तेरे से जो माँगती हूँ उसका बिल पहले तुझे चुकाना होगा।
डाक्टर दिलीप ने कहा-तुम मेरे से क्या माँगती
हो?
बुढ़िया ने कहा-मैंने तुझे सवा नौ महीने तक पेट में रखा। उसका किराया देना होगा। उसके
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