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अनुश्र त श्रुतियाँ उस गुव्वारे के पीछे बच्चे को तरह दौड़ता है, और उसके फूटते ही पीड़ाओं के वात्याचक्र में फंस जाता है। - बौद्ध जातक में एक कथा है। मिथिलापति निमि एक बार गवाक्ष में खड़े नगर शोभा देख रहे थे। सहसा एक विचित्र दृश्य उनकी सुकुमार भावनाओं को झकझोर गया। एक चील मांसपिंड मुह में दबाये आकाश में मंडरा रही थी, और बीसियों पक्षी उस पर झपट-झपट कर चौचे मार रहे थे। मांसपिंड छीनने के लिए आकाश में भयंकर संघर्ष मच रहा था।
सहसा घायल चील के मुह से मांसपिंड छूटा, एक दूसरे पक्षी ने अपनी चोंच में दबाया और अब सब पक्षी उस पर पूरे वेग के साथ झपटने लगे। दूसरा पक्षी घायल हुआ, और तीसरा उसे ले भागा। किंतु उसकी भी वही दुर्गति हुई।
यह दृश्य देखकर निमिराज की अन्तश्चेतना स्फुरित हो उठी- “संसारी काम भोगों की भी यही स्थिति है। जो उसे लेने को आतुर होता है, वहा पीड़ा एवं यंत्रणा से संत्रस्त होकर क्षत-विक्षत, दीन हीन हो जाता है। जिसने भोगों को पकड़े रखा, उसने दु:ख एवं पीड़ा पाई, जिसने त्याग किया वही सुख का अनुभव कर सका।"
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