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पवित्र विचार ही जीवन की सुगंध है ।
तथागत बुद्ध ने इन्हीं पवित्र विचारों से प्रस्फुटित शील की किरणों को जीवन का परम आभूषण माना है । " जन सेवा, एवं लोक करुणा के दिव्य अलंकारों से बढ़कर संसार में न कोई अलंकार है, न हीरे-मोती !
जीवन स्फूर्तियाँ
एक बार स्वीडेन के महाराज की बहन युजिनी के मन में जन सेवा की एक उदात्त लहर उठी, उसने अपने हीरे-मोती के बहुमूल्य आभूषणों की नीलामी करी, और उस धनराशि से गरीबों के लिए एक दवाखाना खुलवाया ।
एक दिन युजिनी दवाखाने में रोगियों से मिलने गई । वहां एक रोगी रोग मुक्त होकर हंसते हुए अपने घर जा रहा था । युजिनी को आते देखकर उस गरीब की आँखों में आभार के आँसू छलक उठे ।
युजिनी का मन प्रसन्नता से थिरक उठा। वह भाव विभोर होकर बोल पड़ी - “गरीबों की प्रसन्नता के ये आंसू ही मेरे हीरे-मोती के सच्चे अलंकार हैं ।"
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