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जोवन स्फूर्तियाँ भगवान महावीर ने कहा है-महप्पसाया इसिणो हवंति'-ऋषिजन, सत्पुरुष महान्-प्रसन्नचित्त वाले होते हैं, अपमान, घृणा व वैमनस्य का जहर उगलने वाले विषधर को भी वे करुणा, स्नेह एवं मुक्ति का दूध पिलाते है।
ऋग्वेदीय सूक्त है
नावाजिनं वाजिना हासयंति, न गर्दभं पुरो अश्वान् नयंति।'
ज्ञानी पुरुष अज्ञानी के साथ स्पर्धा करके अपना उपहास नहीं कराते, अश्व के सम्मुख तुलना के लिए क्या कभी गदहा लाया जा सकता है ?
इस भाव की मार्मिकता स्पष्ट करने वाला एक उदाहरण है-स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन का ।
एक बार स्वामीजी को अनूपशहर में किसी व्यक्ति ने पान में विष दे दिया। यह बात जब लोगों में फैली तो आक्रोश की आग भड़क उठी। वहां के तहसीलदार सैय्यद मुहम्मद जो स्वामी जी के भक्त भी थे, अपराधी को पकड़ कर स्वामी जी के समक्ष उपस्थित किया और
१. ऋगवेद
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