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मारने वाला
२१५ कर व क्रोधी व्यक्तियों के शब्दों से, धमकियों से कभी संत्रस्त नहीं होता । सहिष्णुता का बल ही उसे सर्वत्र निर्भय बनाए रखता है।
बात तब की है, जब विहार के चम्पारन जिले में गांधी जी ने सत्याग्रह किया था। एक बौखलाए हुए अंग्रेज साहब ने घोषणा की-"अगर गांधी मुझे कहीं मिल जाये तो मैं उसे गोली से उड़ा दूं।" __ गांधीजी को अंग्रेज की इस गीदड़-गर्जना का पता चला, दूसरे दिन सबेरे ही वे उस अंग्रेज के बंगले पर अकेले पहुचे । अंग्रेज को सोते से जगाकर कहा-"मैं गांधी हूँ, आपने मुझे मारने की प्रतिज्ञा की, इसीलिए मैं अकेला यहाँ चला आया हूँ ताकि आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो सके।"
गांधीजी की निर्भय मुखमुद्रा पर चमकते तेजस्वी नेत्रों में झांकने का साहस उसे नहीं हुआ। वह गांधीजी के चरणों में झुकगया-"गांधी को भगवान भी नहीं मार सकता।"
गांधी जी की क्षमा एवं अभय साधना ने मारने वाले को भी परम भक्त बना दिया।
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