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सम्मान किसमें ?
हीरे की महत्ता सोने-चाँदी की डिबिया में नहीं, उसकी तेजस्विता में है। सत्पुरुषों की महत्ता उनके पद या सन्मान में नहीं, किन्तु उनके दिव्य मानवीय गुणों से है। महाकारुणिक बुद्ध ने कहा है
परस्स चे बंभयितेन हीनो,
न कोचि धम्मेषु विसेसि अस्स। यदि दूसरों की ओर से अवज्ञा या अपमान करने से कोई धर्म, कोई सद्गुण हीन हो जाये तो फिर संसार में कोई भी धर्म और गुण श्रेष्ठ नहीं रह सकेगा। संस्कृत के महाकाव्य किरातार्जुनीय में कहा है-.
गुरुतां नयंति हि गुणाः, न संहतिः
१. सुत्तनिपात ४।५१।११
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