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जीवन स्फूर्तियाँ दृढ संकल्पी-राष्ट्रनेता गोपाल कृष्ण गोखले के बचपन का एक प्रसंग है। गोखले बालक थे। स्कूल में एक दिन अध्यापक ने अंकगणित के कुछ कठिन प्रश्न विद्यार्थियों को घर पर करने के लिए दिए। ___"भाई, क्या करू ? मुझे तो यह सवाल नहीं सूझ रहे हैं, तुम कुछ मेरी सहायता करो।"--गोखले ने अपने मित्र विद्यार्थी से कहा, और उसके सहयोग से उसने प्रश्न हल कर लिए।।
"सभी विद्यार्थियों में गोखले के उत्तर सही हैंयह विद्यार्थी बहुत अच्छा है"- अध्यापक ने कापियां जांचने के बाद गोखले की पीठ थप-थपाकर एक पुरस्कार देते हुए कहा
किंतु गोखले तो सुबक-सुबक रोने लगा। अध्यापक ने पूछा-"रोते क्यों हो?" ___ "मैंने आज आपको धोखा दिया है, मुझे इसकी सजा मिलनी चाहिए, पर आप मुझे पुरस्कार दे रहे हैं ?"--- गोखले ने कहा।
"धोखा ? कैसा धोखा?"-आश्चर्य-पूर्वक अध्यापक ने पूछा।
ये गणित के प्रश्न मैंने अपनी बुद्धि से नहीं, किंतु अपने मित्र की सहायता से हल किए हैं, और आपने मेरी बुद्धिमानी समझी है, गुरुजी ! यह कितना बड़ा धोखा होगया"-बालक गोखले फिर रोने लग गया।
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