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संत का मूल्य संत राष्ट्र के नहीं, मानव जाति के गौरव स्तंभ होते हैं । महान जैनाचार्य भद्रबाहु स्वामी के शब्दों में
जे पवरा होति मुणि, ते पवरा पुडरीया उ।' अध्यात्म के मूर्तिमंत रूप संतजन विश्व में सर्वश्रेष्ठ पुंडरीक कमल हैं।
संतों की सद्गुण सुरभि से समस्त मानव जाति अनुप्रीणित होती है, उनकी आध्यात्मिक थाती विश्व की सर्वश्रेष्ठ संपत्ति है। संत का मूल्य विशाल-साम्राज्य से भी बढ़कर है।
ईरान के इतिहास में एक गौरव गाथा आज भी कोहे-नूर की भांति अपनी उज्ज्वल आभा से दीप्त हो रही है।
तुर्कों और ईरानियों के बीच पीढ़ियों से संघर्ष चला आ रहा था। एक बार दोनों में भीषण युद्ध हुआ। तुर्क
१. उत्तराध्ययन नि० २५।३१-३२
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