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दया का असली रूप
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दूसरे को पीड़ा से प्रकम्पित होता देखकर जिसका हृदय कंपित न हो जाये, वह कठिन हृदय निरनुकंप कहलाता है। चूंकि अनुकंपा का अर्थ ही है-कांपते हुए को देखकर कंपित हो उठना ।"
अमेरिका के एक राष्ट्रपति के सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि वे एक बार राजसभा में अपना भाषण देने जा रहे थे । मार्ग में देखा कि - एक दलदल में फंसा सूअर निकलने का जी तोड़ प्रयत्न कर रहा है, पर ज्यों-ज्यों वह प्रयत्न करता है, अधिक गहरा धंसता जा रहा है ।
सूअर की दयनीय दशा ने राष्ट्रपति के हृदय को द्रवित कर दिया । वे तत्क्षण अपनी राजसभा की पोशाक में ही कीचड़ में कूदे और पूरी ताकत लगाकर सूअर को बाहर निकाल लाये ।
राजसभा में भाषण का समय हो गया था, कपड़े बदलने में और अधिक विलम्ब होता, अतः राष्ट्रपति उन्हीं कपड़ों को जरा पूछ पाँछकर सीधे राजसभा में ठीक समय पर पहुँच गये ।
सदस्यों ने राष्ट्रपति के कीचड़ भरे कपड़े देखे तो आश्चर्य में डूब गये । जब घटना सुनी तो मुक्त कंठ से राष्ट्रपति की दयालुता की प्रशंसा करने लगे । राष्ट्रपति ने सदस्यों को प्रशंसा करने से रोकते हुए कहा - " मैंने कोई दया का काम नहीं किया है, वास्तव में सूअर को कीचड़ में बुरी तरह धंसा देखकर मेरा हृदय दुःखी हो उठा । मैंने अपना दुःख दूर करने के लिए ही उसे बाहर निकाला, इसमें प्रशंसा की कौन-सी बात है
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