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जीवन स्फूर्तियाँ हुई वह तो कुछ अपूर्व ही थी। वैसा आनन्द आज तक नहीं मिला।"
तानसेन ने छूटते ही कहा--- "जहाँपनाह ! इसका तो एक खास कारण है ?"
अकबर ने गंभीर होकर पूछा--'क्या' ?
"मेरे गुरुजी अपनी इच्छा और अपनी मौज में गाते हैं, किन्तु मुझे जहाँपनाह की आज्ञा पर और आपकी मर्जी से गाना पड़ता है।
तानसेन के उत्तर पर अकबर मौन हो गए !
तानसेन के उत्तर में काव्य-संगीत व साहित्य-कला का चरम उत्कर्ष-'स्वान्तः सुखाय' अभिव्यक्त होता है।
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