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तोन गुण
एक बार यमुना तट पर शीतल मंद समीर का आनन्द लेते हुए श्रीकृष्ण कदम्ब की छाया में बैठे बांसुरी बजा रहे थे ।
ती गगरिया सिर पर ली हुई ब्रज बालाएं यमुना की ओर आ रही थीं। श्री कृष्ण की बंशरी की मीठी टेर सुनी तो एक बार सबके पांव थिरक उठे, और दौड़ पड़ी बंशरी की मधुर ध्वनि के पीछे । हवा में आंचल लहराती बालाएं नट नागर को घेर कर खड़ी होगईं और आक्रोश भरे स्वर में बोल उठीं - " जब देखो, तब यह बंशरी ही मुंह से लगी है, इसे ही प्यार करते हो, दुलारते हो, साथ-साथ लिए घूमते हो, जैसे यही बस प्राण - प्रिया है ।"
श्रीकृष्ण ने मधुरहास्य के साथ ब्रज गोपियों की ओर देखा और पुनः बांसुरी की मीठी टेर छोड़ने लगे ।
नारी का सहज ईर्ष्या भाव जग उठा । " श्याम ! यह काली कलौंठी नंगी बांसुरी तुम्हें प्यारी लगती है और हम गौरी-गौरी निर्मलवसना बालाएं तुम्हें सचमुच बुरी लगती हैं, तभी तो तुम हम से दूर भाग कर इससे प्यार करते हो, छुप-छुप कर ।" स्नेहिल कटाक्षों से निहारती हुई गोप बालाएं श्री कृष्ण के चारों ओर घुमर डालती हुई कृत्रिम रोष के साथ घूरने लगीं ।
"नारी सहज ईष्यालु होती है" - एक मीठे व्यंग्य के साथ श्रीकृष्ण बोले -- "मुझे तो गुण प्रिय है, जहाँ मकरंद
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